Book Title: Kasaypahudam Part 06
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 384
________________ गा० २२] उत्तरपडिपदेसविहत्तीए सामित्तं ३७३ सव्वट्ठाणेसु मेलाविदेसु एगफालिविसए समुप्पण्णट्ठाणाणि होति । एदेसि जोगहाणाणि त्ति सण्णा, कजे कारणोवयारादो । एदेसु जोगहाणेसु दुसमयूणदोआवलियाहि गुणिदेसु अवगदवेदम्मि समुप्पण्णसांतरट्ठाणाणि होति ।। * चरिमसमयसवेदस्स एगं फदयं । $ ४२६. खविदकम्मंसियलक्खणेणातूण पुणो पलिदोवमस्स असंखेजदिभागमेत्तसंजमासंजमकंडयाणि तत्तियमेत्ताणि चेव सम्मत्त कंडयाणि अणंताणुबंधिविसंजोयणाए सहियाणि अट्ठसंजमकंडयाणि चदुक्खुत्तो कसायउपसामणाओ च फरिय चरिमभवम्मि पुव्वकोडाउएसु मणुस्सेसुवव जिय पुणो तत्थ संजमं घेत्तण देसूणपुव्वकोडीए संजमगुणसेढिणिजरं करिय पुणो चारित्तमोहक्खवणाए अब्भुडिय जद्दण्णपरिणामेहि चेव अपुव्वगुणसेटिं करिय पुणो पुरिसवेदचरिमफालिमवणिय सवेदचरिमसमए हिदस्स पुरिसवेदहाणमंतरिदूण समुप्पण्णत्तादो अण्णमेगौं फद्दयं । किं पमाणमत्थंतरं ? दुसमयणदोआवलियमत्त उकस्ससमयपबद्धहिंतो असंखेजगुणं । कुदो? दुसमयणदोआवलियमेत्तकस्ससमयपबद्धेसु समयूणदोआवलियमेत्तजहण्णसमयपबद्धसहिदअसंखेजसमयपबद्धमत्तपयडि-विगिदिगोउच्छाहितो तत्तो असंखेजगुणअपुव्वअणियट्टिगुणसेढिगोउच्छाहितो च सोहिदेसु सुद्धसेसम्मि असंखेजाणं समयपबद्ध ाणं उपलंभादो। प्रकार इन सब स्थानोंके मिलाने पर एक फालिके विषयमें उत्पन्न हुए स्थान होते हैं। कार्य में कारणका उपचार करनेसे इनकी योगस्थान ऐसी संज्ञा है। इन योगस्थानोंके दो समय कम दो आवलियोंसे गुणित करने पर अपगतवेदमें उत्पन्न हुए सान्तर स्थान होते हैं। चरम समयवतों सवंदी जीवका एक स्पर्धक है। $ ४२६. क्षपित कर्माशिकलक्षणसे आकर पुनः पल्यके असंख्यातवें भागमात्र संयमासंयमकाण्डकोको और उतने ही सम्यक्त्वकाण्डकोंको तथा अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजनाके साथ आठ संयमकाण्डकोंको और चार बार कषायोंकी उपशमना करके अन्तिम भवमें पूर्वकोटिकी आयुवाले मनुष्यों में उत्पन्न होकर पुनः वहाँ पर संयमको ग्रहण कर कुछ कम पूर्वकोटि के द्वारा संयमगुणश्रेणिकी निर्जरा करके पुनः चारित्रमोहनीयकी क्षपणाके लिये उद्यत होकर जघन्य परिणामोंके द्वारा ही अपूर्व गुणश्रेणि करके पुनः पुरुषवेदकी अन्तिम फालिका अपनयन करके जो सवेद भागके अन्तिम समयमें स्थित है उसके पुरुषवेदके स्थानका अन्तर देकर उत्पन्न होनेसे अन्य एक स्पर्धक होता है। शंका-यहाँ पर अन्तरका क्या प्रमाण है ? समाधान-उसका प्रमाण दो समय कम दो आवलिमात्र उत्कृष्ट समयप्रबद्धोंसे असंख्यातगुणा है, क्योंकि दो समय कम दो आवलिमात्र उत्कृष्ट समयप्रबद्धोंके एक समय कम दो भावलिमात्र जघन्य समयप्रबद्ध सहित असंख्यात समयप्रबद्धमात्र प्रकृति और विकृति गोपुच्छाओंमेंसे तथा उनसे असंख्यातगुणी अपूर्व और अनिवृत्ति गुणश्रेणि गोपुच्छाओंमेंसे घटा देने पर जो शेष रहे उसमें असंख्यात समयप्रबद्ध उपलब्ध होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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