Book Title: Kasaypahudam Part 06
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 363
________________ ३५२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ जोग पत्तो त्ति । एवमुवरिमासेसकिरियं जाणिदण घेयव्वं जाव दुसमयूणदोआवलियमेत्तसमयपबद्धा वड्डिदा ति । एवं वड्डाविदे दुसमयूणदोआवलियमेत्तसमयपबद्धाणमुक्कस्सहाणादो हेहा चदुरूऊणअधापवत्तभागहारमेत्त चरिमफालिहाणाणमंतराणि मोत्तण सेसासेसहाणंतरेसु तदियपरिवाडीए दुचरिमफालिट्ठाणाणि समुप्पण्णाणि । ____३९६. संपहि चउत्थपरिवाडीए दुचरिमफालिहाणाणं परूवणं कस्सामो । तं जहा-दोसु समएसु घोलमाणजहण्णजोगेण बंधिय अधियारदुचरिमसमयम्मि हिदखवगहाणघोलमाणजहण्णजोगादो सादिरेयदुगुणजोगहाणं गंतूण हिदेगफालिट्ठाणेग सह सरिसं होदि ति पुणरुतं । संपहि अपुणरुत्तहाशुप्पायण दोफालिक्खवगो एगवारेण चदुपक्खेउत्तरजोगं णेदव्यो । एवं णीदे चउत्थपरिवाडीए पढमपुणरु त्तहाणं, चरिमफालिहाणं पेक्खिदण चदुहि दुचरिमफालिहाणेहि अहियत्तवलंभादो। संपहि एदमेत्थेव दृविय एगफालिक्खवगो पक्खेउत्तरकमेण वड्ढावेदव्यो जाव जहण्णजोगहाणादो असंखेजगुणं जोगं पत्तोत्ति । एवं सव्वसंधीओ जाणिदूण णेदवंजाव दुसमयणदोआवलियमेत्तसमयपबद्धा वडिदा ति । एवं वड्डाविदे दुसमयूणदोआवलियमेत्तसमयपबद्धाणमुक्कस्सएगफालिहाणादो हेट्ठा पंचरूऊणअधापवत्तभागहारमेत्तहाणंतराणि मोत्तण सेसासेसहाणंतरेसु चउत्थपरिवाडीए दुचरिमफालिहाणाणि समुप्पण्णाणि । प्रकार उपरिम समस्त क्रियाको जानकर दो समयकम दो आवलिमात्र समयप्रबद्धोंकी वृद्धि होने तक ले जाना चाहिए। इस प्रकार बढ़ाने पर दो समय कम दो आवलिमात्र समयप्रबद्धोंके उत्कृष्ट स्थानसे नीचे चार रूपकम अधःप्रवृत्त भागहारमात्र चरम फालिस्थानोंके अन्तरालोंको छोड़कर शेष समस्त स्थानोंके अन्तरालोंमें तृतीय परिपाटीके अनुसार विचरम फाळिस्थान उत्पन्न हुए। ६३९६. अब चतुर्थ परिपाटीके अनुसार द्विचरम फालिस्थानोंका कथन करते हैं। यथा-दो समयोंमें घोलमान जघन्य योगसे बन्ध कर अधिकृत द्विचरम समयमें स्थित क्षपकस्थानके घोलमान जघन्य योगसे साधिक दूने योगस्थान जाकर स्थित हुए एक फालिस्थानके समान होता है, इसलिए पुनरुक्त है। अब अपनरुक्त स्थानके उत्पन्न करनेके लिये दो फालिक्षपकको एक बारमें चार प्रश्लेप अधिक योग तक ले जाना चाहिये। इस प्रकार ले जाने पर चतुर्थ परिपाटीके अनुसार पहला अपुनरुक्त स्थान होता है, क्योंकि चरम फालिस्थानको देखते हुए इसमें चार द्विचरम फालिस्थान रूपसे अधिकता उपलब्ध होती है। अब इसे यहीं पर स्थापित करके एक फालिक्षपकको जघन्य योगस्थानसे असंख्यातगुणे योगके प्राप्त होने तक एक एक प्रक्षेप अधिकके क्रमसे बढ़ाना चाहिए। इस प्रकार सब सन्धियोंको जान कर दो समय कम दो आवलिमात्र समयप्रबद्धोंकी वृद्धि होने तक बढ़ाना चाहिए। इस प्रकार बढ़ाने पर दो समय कम दो आवलिमात्र समयप्रबद्धोंके उत्कृष्ट एक फालिस्थानसे नीचे पाँच रूप कम अधःप्रवृत्त भागहारमात्र स्थानोंके अन्तरालोंको छोड़कर शेष समस्त स्थानोंके अन्त परिपाटीके अनुसार द्विचरम फालिस्थान उत्पन्न हए। इस प्रकार एक एक दिचरम .. रालोग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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