Book Title: Kasaypahudam Part 06
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 359
________________ ३४८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पदेसविहत्ती ५ वडावेदव्वो जावुक्कस्सजोग पत्तो ति । एवं वडाविदे छप्फालिसामिणो उक्कस्सपदेससंतकम्मट्ठाणादो हेट्टा दुरूवूणअधापवत्तभागहारमेत्तचरिमफालिहाणाणि मोत्तूण अण्णत्थ सव्वत्थ दचरिमफालिट्ठाणाणि उप्पण्णाणि । संपहि छप्फालिखवगमस्सिदूण दुचरिमफालिट्ठाणाणमुप्पायणसंभवो पत्थि त्ति चदुब्भागूणउक्कस्सजोगडिददसफालिक्खवगं छफालीणमुक्कस्सजोगट्ठाणेण सरिसत्तविहाणटुं रूवणअधापवत्तभागहारेण खंडिददिवड्डजोगहाणमेत्तं सादिरेयं चदचरिमसमए हेढा ओदारिय हिदजोग अप्पिदट्ठाणेण सरिसत्त विहाणटं पुणरवि चदुचरिमसमए भोदिण्णअधापवत्तभागहारमेत्तजोगहाणं दुचरिमफालिपदेससंतकम्मुप्पायण तिचरिमममए पुणो संकंतपक्खेवुत्तरजोगमस्सिदूण दुचरिमफालिट्ठाणाणमुप्पायणं पुन्वं व कायव्वं । एवं पंच-छ-सत्तभागूणादिफालीओ इच्छिद-इच्छिदट्ठाणेण समयाविरोहण विहिदसरिसत्ताओ अस्सिद्ग दुचरिमफालिहाणाणि उप्पाएदव्वाणि जाव दुसमऊणदोआवलियमेत्तसमयपबद्धाणमुक्कस्सट्ठाणादो हेहा दरूवूणअधापवत्तभागहारमेत्तचरिमफालिट्ठाणाणमंतराणि मोत्तण अवरासेसंतरेसु उप्पण्णाणि त्ति । ६ ३९२. संपहि चरिमफालिहाणंतरेसु दोहि दुचरिमफालियाहि अहियाणं पदेससंतकम्मट्ठाणाणमुप्पत्तिं वत्तइस्सामो । तं जहा-सवेदचरिम-दचरिमसमएम घोलमाणजहण्णजोगेण बंधिय अधियारदुचरिमसमए हिदस्स तिण्णिफालिट्ठाणं पुणरुत्तं, होने तक एक एक प्रक्षेप अधिकके क्रमसे बढ़ाना चाहिये । इस प्रकार बढ़ाने पर छह फालिस्वामीके उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्मस्थानसे नीचे दो रूप कम अधःप्रवृत्तभागहारमात्र चरम फालिस्थानोंको छोड़कर अन्यत्र सर्वत्र द्विचरम फालिस्थान उत्पन्न हुए हैं। अब छह फालि क्षपकका आश्भय लेकर द्विचरम फालिस्थानोंको उत्पन्न कराना सम्भव नहीं है, इसलिए चतुर्थ भाग कम उत्कृष्ट योगमें स्थित दस फालिक्षपकको छह फालियोंके उत्कृष्ट योगस्थानके समान बनानेके लिए एक कम अधःप्रवृत्तभागहारसे भाजित साधिक डेढ़ योगस्थानमात्र चतुश्चरम समयमें नीचे उतारकर स्थित हुए योगको विवक्षित स्थानके समान करनेके लिए फिर भी चतुश्चरम समयमें अवतीर्ण हुए अधःप्रवृत्तभागहारमात्र योगस्थानको द्विचरम फालिके प्रदेशसत्कर्मको उत्पन्न करनेके लिए त्रिचरम समयमें पुनः संक्रमणको प्राप्त हुए एक प्रक्षेप अधिक योगका आश्रय लेकर विचरम फालिस्थानों को उत्पन्न करनेके लिए पहलेके समान करना चाहिए । इस प्रकार इच्छित इच्छित स्थानके आश्रयसे समयके अवरोधपूर्वक सदृश की गई पाँच, छह और सात भाग कम आदि फालियोंका आश्रय लेकर दो समयकम दो आवलिमात्र समयप्रबद्धोंके उत्कृष्ट स्थानसे नीचे दो रूपकम अधःप्रवृत्तभागहारमात्र चरम फालिस्थानोंके अन्तरालोंको छोड़कर शेष समस्त अन्तरालोंमें उत्पन्न होने तक द्विचरम फालिस्थानोंको उत्पन्न कराना चाहिए । ६३९२. अब चरम फालिस्थानोंके अन्तरालोंमें दो द्विचरम फालियोंसे अधिक प्रदेशसत्कर्मस्थानोंकी उत्पत्तिको बतलाते हैं । यथा-सवेद भागके चरम और द्वि चरम समयोंमें घोलमान जघन्य योगसे बन्धकर अधिकृत द्विचरम समयमें जो स्थित है उसका तीन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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