Book Title: Kasaypahudam Part 06
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 358
________________ गा० २२] उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए सामित्तं ३४७ $ ३९०. संपहि एदाओ अहियफालीओ चरिमफालिपमाणेण कोरमाणीओ रूखूणअधापवत्तभागहारेणोवट्टिदसादिरेयदुगुणचडिदद्धाणमेत्ताओ होति ति पुणरवि एगफालिक्खवगो एत्तियमेत्तमद्धाणमोदारेदव्यो । एवमोदारिय दोफालिक्खवगे पक्खेवुत्तरजोगं णीदे पव्वं णियत्ताविददचरिमफालिट्ठाणे पुणरुत्तमुप्पजदि । संपहि इमं दोफालिखवगमेत्येव ढविय एगफालिखवगो पक्खेवुत्तरादिकमेण वड्ढावेदव्वो जावुक्कस्सजोगहाणं पत्तोत्ति। एवं वड्डाविय दोफालिखवगंणियत्ताविय चरिमफालिट्ठाणेण सरिसं कादण द्विदट्ठाणादो तिचरिमसमए तिभागूणुक्कस्सजोगेण चरिम-दुचरिमसमएसु उक्कस्सजोगेण बंधिसूण अधियारतिचरिमसमए अवडिदस्स पदेससंतकम्महाणं विसेसाहियं, चडिदद्धाणमेत्तदचरिमफालीणमहियत्तुवलंभादो । पुणो एदाओ दुचरिमफालियाओ चरिमफालिपमाणेण कीरमाणाओ रूवूणअधापवत्तभागहारेण खंडिदचडिदद्धाणमेत्ताओ होति त्ति एगफालिक्खवगो पुणरवि एत्तियमेत्तमद्धाणमोदारेदब्यो । एवमोदारिय रूवूणअधापवत्तभागहारमेत्तजोगहाणाणं दोफालिक्खवगे हेट्ठा ओदारिदे अधापवत्तभागहारमेत्ताणि चरिमफालिट्ठाणाणि विदंति ति सगट्ठाणादो रूवूणअधापवत्तमेत्तजोगट्ठाणाणि ओदारेदव्यो। एवमोदारिय दोफालिक्खवगे पक्खेवुत्तरं जोग णोदे दुचरिमफालिट्ठाणमुप्पजदि । $ ३९१. संपहि इमं एत्थेव दृविय पुणो एगफालिक्खवगो पक्खेवुत्तरादिकमेण ६३९० अब इन अधिक फालियोंको चरम फालिके प्रमाणसे करने पर वे एक कम अधःप्रवृत्त भागहारसे भाजित साधिक दूने आगे गये हुए अध्वानमात्र होती हैं, इसलिए फिर भी एक फालिक्षपकको इतनामात्र अध्वान उतारना चाहिए। इसप्रकार उतारकर दो फालिक्षपकके प्रक्षेप अधिक योगको प्राप्त कराने पर पहले निवृत्त कराया गया द्विचरम फालिस्थानमें पुनरुक्त उत्पन्न होता है। अब इस दो फालिक्षपकको यहीं पर स्थापित करके एक फालिक्षपकको उत्कृष्ट योगस्थानके प्राप्त होने तक एक एक प्रक्षेप अधिकके क्रमसे बढ़ाना चाहिए। इस प्रकार बढ़ाकर दो फालिक्षपकको निवृत्त कराकर चरम फालिस्थानके समान करके स्थित हुए स्थानसे त्रिचरम समयमें तृतीय भाग कम उत्कृष्ट योगसे तथा चरम और द्विचरम समयमें उत्कृष्ट योगसे बन्ध कराकर अधिकृत त्रिचरम समयमें जो अवस्थित है उसका प्रदेशसत्कर्मस्थान विशेष अधिक होता है, क्योंकि आगे गये हुए अधवानमात्र द्वि चरम फालियोंकी अधिकता उपलब्ध होती है। पुनः इन द्विचरम फालियोंको चरम फालिके प्रमाणसे करने पर वे एक कम अधःप्रवृत्त भागहारसे भाजित आगे गये हुए अध्वानमात्र होती हैं, इसलिए एक फालिक्षपकको फिर भी इतना मात्र अध्वान उतारना चाहिए। इसप्रकार उतारकर एक कम अधःप्रवृत्तभागहारमात्र योगस्थानोंके दो फालिक्षपकको नीचे उतारनेपर अधःप्रवृत्तभागहारमात्र चरम फालिस्थान पतित होते हैं इसलिए अपने स्थानसे एक कम अधःप्रवृत्तमात्र योगस्थान उतारना चाहिए। इसप्रकार उतारकर दो फालि क्षपकको प्रक्षेप अधिक योगको प्राप्त कराने पर विचरम फालिस्थान उत्पन्न होता है। ६ ३९१. अब इसे यहीं पर स्थापित करके पुनः एक फालिक्षपकको उत्कृष्ट योगके प्राप्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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