Book Title: Kasaypahudam Part 06
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 341
________________ ३३० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ पक्खेवभागहारे खंडिदे तत्थ एयखंडमेत्ताओ चरिमफालियाओ लम्भंति ।। ३६९. संपहि एकिस्से दुचरिमफालियाए जदि सगलजोगट्ठाणद्धाणं रूवणअधापवत्तेण खंडेदूण तत्थ एगखंडमेत्ताओ चरिमफालियाओ लभंति तो किंचूणअद्धाहियपदरावलियमेत्तदुचरिमाणं किं लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए साद्धपदरावलियाए खंडियरूवणअधापवत्तभागहारेण उक्कस्सजोगहाणपक्खेवभागहारे ओवट्टिदे लद्धम्मि जत्तियाओ चरिमफालीओ तत्तियमेत्ताणि चेव पदेससंतकम्मट्ठाणाणि लभंति । एदाणि सव्वट्ठाणाणि सयलजोगट्ठाणस्स असंखे०भागमेत्ताणि होति ति । एदेसिमागमणडं गुणगारम्मि एगरूवस्स असंखे०भागो पक्खिविदव्यो। तम्हा दोहि आवलियाहि दुसमयूणाहि पदप्पण्णजोगट्ठागमेत्ताणि पुरिसवेदस्स पदेससंतकम्मट्ठाणाणि होति सि सिद्धं । ३७०. अथवा अण्णेण पयारेण जोगहाणाणं दसमयणदोआवलियगुणगारसाहणं च कस्सामो । तं जहा-चरिमसमयसवेदेण घोलमाणजहण्णजोगेण बद्धजहण्णदव्वस्सुवरि पक्खेवत्तरादिकमेण वड्डाविय णेदव्वं जाव उक्कस्सजोगट्टाणं पत्तं ति । एवं णीदे एगा चरिमफाली उकस्सा जादा। संपहि अण्णेगो दुचरिमसममए चरिमसमए वि अद्धजोगेण चेव बंधिदूण पुणो अधियारदुचरिमसमए अवहिदो तस्स तिण्णि फालीओ दीसंति । संपहि एगफालिउकस्सदव्वादो तिण्णिफालिखवगस्स दव्वं विसेसाहियं। दोसु अद्धजोगचरिमफालिसु एगुक्कस्सजोगचरिमफाली होदि त्ति अवणिदासु चरम फालियाँ प्राप्त होती हैं। ६३६९. अब यदि एक द्विचरम फालिके समस्त योगस्थान अध्वानको एक कम अधःप्रवृत्तसे भाजित कर वहाँ एक भागप्रमाण चरम फालियाँ प्राप्त होती हैं तो कुछ कम अर्धभाग अधिक प्रतरावलिमात्र द्विचरमों में क्या प्राप्त होगा, इसप्रकार फलराशिसे गुणित इच्छाराशिमें प्रमाणराशिका भाग देने पर अर्धभागसहित प्रतरावलिसे भाजित एक कम अधःप्रवृत्तभागहारका उत्कृष्ट योगस्थानके प्रक्षेपभागहारमें भाग देने पर लब्ध रूपमें जितनी भन्तिम फालियां हों उतने ही प्रदेशसत्कर्मस्थान प्राप्त होते हैं। ये सब स्थान समस्त योगस्थानके असंख्यातवें भागप्रमाण होते हैं, इसलिए इनके लाने के लिए गणकारमें एक रूपका असंख्यातवां भाग मिलाना चाहिए । इसलिए दो समय कम दो आवलियोंसे उत्पन्न योगस्थानप्रमाण पुरुषवेदके सत्कर्मस्थान होते हैं यह सिद्ध हुआ। ६३७०. अथवा अन्य प्रकारसे योगस्थानोंके दो समय कम दो आवलिप्रमाण गुणकारकी सिद्धि करते हैं । यथा-चरम समयवर्ती सवेदी जीवके द्वारा घोलमान जघन्य योगसे बांधे गये जघन्य द्रव्यके ऊपर एक एक प्रक्षेप अधिकके क्रमसे बढ़ाकर उत्कृष्ट योगस्थानके प्राप्त होने तक लेजाना चाहिये । इस प्रकार ले जाने पर एक चरम फालि उत्कृष्ट हुई । अब एक अन्य जीव द्विचरम समयमें और चरम समयमें भी अर्ध योगसे हो बांधकर पुनः भधिकृत द्विचरम समयमें अवस्थित है उसके तीन फालियाँ दिखलाई देती हैं । अब एक कालिके उत्कृष्ट द्रव्यसे तीन फालि क्षपकका द्रव्य विशेष अधिक है। दो अर्ध योग चरम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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