Book Title: Kasaypahudam Part 06
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 345
________________ २३४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [देसविहत्ती ५ चेव पुरिसवेदं बंधिय अधियारतिचरिमसमए हिदतिभागूणुक्कस्सक्खवगछप्कालीओ पबिल्ल छप्फालीहितो विसेसाहियाओ, चडिदद्धाणमेत्तदुचरिमफालीणमहियत्तुवलंभादो । ३७४. संपहि इमाओ अहियदचरिमफालीओ चरिमफालिपमाणेण कीरमाणाओ रूवणअधापवत्तभागहारेणोवट्टिदुक्कस्सजोणट्ठाणपक्खेवभागहारतिभागमेत्ताओ चरिमफालीओ होति त्ति तिचरिमसमयसवेदो पुणरवि हेढा एत्तियमेत्तमोदारेदव्यो । एवमोदारिय पणो इमो पक्खेवत्तरकमेण वड्ढावेदव्यो जाव उक्कस्सजोगहाणं पत्तो त्ति । एवं वड्डाविदे दुचरिमफालिणिमित्तमोदरियमद्धाणं तिचरिमसमयसवेदस्स विदियतिभागमेत्तजोगडाणद्धाणं च लद्धं होदि. । संपहि सवेदचरिमसमए दुचरिमसमए च उक्कस्सजोगेण तिचरिमसमए तिभागूणुकस्सजोगेण परिसवेदं बंधिय अधियारतिचरिमसमयम्मि द्विदस्स छप्फालिदव्वं पुव्विल्लछप्फालिदव्वादो विसेसाहियं, उक्कस्सजोगहाणपक्खेवभागहारस्स तिभागमेत्ताणं दचरिम-तिचरिमफालोणमहियत्तवलंभादो। ___$ ३७५. संपहि इमाओ दुचरिम-तिचरिमफालीओ चरिमफालिपमाणेण कीरमाणाओ रूवूणअधापत्तभागहारेणोवट्टिदुक्कस्सजोगहाणभागहारस्स सादिरेयवेतिभागमेत्ताओ चरिमफालीओ होति त्ति पुणरवि एत्तियमेत्तमद्धाणं तिचरिमसमयसवेदो हेट्ठा ओदारेदव्यो । संपहि इमो तिचरिमसमयसवेदो पक्खेवत्तरकमेण वड्ढावेदव्यो जाव कर अधिकृत त्रिवरम समयमें स्थित हुई त्रिभाग कम उत्कृष्ट क्षपकसम्बन्धी छह फालियाँ पहलेकी छह फालियोंसे विशेष अधिक हैं, क्योंकि जितने स्थान आगे गये हैं उतनी द्विचरम फालियोंकी अधिकता पाई जाती है। ६३७४. अब इन अधिक द्विचरम फालियांको चरम फालिके प्रमाणसे करने पर एक कम अधःप्रवृत्तभागहारसे भाजित उत्कृष्ट योगस्थान प्रक्षेप भागहारके त्रिभागप्रमाण चरम फालियों होती है, इसलिए त्रिचरम समयवती सवेदी जीवको फिर भी नीचे इतना उतारना चाहिए। इस प्रकार उतार कर पुनः इसे एक एक प्रक्षेप अधिकके क्रमसे उत्कृष्ट योगस्थानके प्राप्त होने तक बढ़ाना चाहिए। इस प्रकार बढ़ाने पर विचरम फालिका निमित्तभूत अवतरित अध्वान और त्रिचरम समयवर्ती सवेदी जीवके द्वितीय त्रिभागमात्र योगस्थान अध्वान लब्ध होता है। अब सवेद भागके अन्तिम समयमें और द्विचरम समयमें तथा उत्कृष्ट योगसे त्रिचरम समयमें तृतीय भाग कम उत्कृष्ट योगसे पुरुषवेदको बाँध कर अधिकृत त्रिचरम समयमें स्थित हुए जीवके छह फालिका द्रव्य पहलेकी छह फालियोंके द्रव्यसे विशेष अधिक है, क्योंकि उत्कृष्ट योगस्थानके प्रक्षेप भागहारके तृतीय भागप्रमाण द्विचरम और त्रिचरम फालियोंकी अधिकता पाई जाती है। ६३७५. अब इन द्विचरम और त्रिचरम फालियोंको चरम फालिके प्रमाणसे करने पर एक कम अधःप्रवृत्तभागहारसे भाजित उत्कृष्ट योगस्थान भागहारकी साधिक दो तीन भागप्रमाण चरम फालियाँ होती हैं, इसलिए फिर भी विचरम समयवर्ती सवेदी जीवको इतना मात्र अध्वान नीचे उतारना चाहिए। अब इस त्रिचरम समयवर्ती सवेदी जीवको एक 1. आप्रतौ '-जोगट्ठाणद्वाणं वत्तन्वं होदि-' इति पाः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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