Book Title: Kasaypahudam Part 06
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 342
________________ गा० २२ ] उत्तरपयडिपदेविहतीए सामितं ३३१ चरिमसमय सवेदेण अद्धजोगेण बद्धदुचरिमफालीए अहियत्तुवलंभादो । संपहि अद्धजोग पक्खेव भागहारमे तदचरिमफालीओ चरमफालिपमाणेण कीरमाणाओ रूवूण अधापवत्तभागहारेण ओवविदअद्ध जोगपक्खेव भागहारमेताओ होंति ति तेत्तियमेत्तमद्भाणं दचरिमसमयसवेदो अद्धजोगादो हेड्ट्ठा ओदारेदव्वो । एवमेदेहि जोगेहि परिणदखवगतिण्णिफालीओ उक्कस्सजोगेण परिणदखवगेगफालीओ समाणाओ, ओट्टिदअधियदव्वत्तादो । ९ ३७१. संपधि इमो दुरिमसमयसवेदो पक्खेवुत्तरकमेण वढावेदव्वो जाव अद्धजोगं पत्तो त्ति । एवं वड्डाविदे पुव्विल्ल अद्धजोगेण बद्धदुचरिमफाली पक्खेवुत्तरकमेण सयला बड्डिदा त्ति । संपहि अद्धजोगादो उवरि दुवरिमसमयसवेदे पवखेवुत्तरकमेण जावकस्स जोगद्वाणं ति ताव वड्ढमाणे चरिमफालियाए अद्धजोगपक्खेव भागहारमे तद्वाणाणि लद्भाणि होंति । संपहि सवेदचरिमसमए उकस्सजोगेण दुवरिमसमए अद्धजोगेण पुरिसवेदं बंधिय अधियारदुचरिमसमए द्विदस्स तिष्णिफालिदव्वं पुब्विल्लतिष्णिफालिदव्वादो विसेसाहियं चडिदद्वाणमेतदुच रिमफालीणमहियाणमुवलंभादो । पुणो एदाओ अधियदुचरिमफालीओ चरिमफालिपमाणेण कीरमाणाओ रूवूणअधापवत्तभागहारेणोदिअद्धजोगपक्खेव भागहारमेत्ताओ चरिमफालीओ होंति त्ति पुणरवि अद्धजोगादो फालियों में एक उत्कृष्ट योग चरम फालि होती है, इसलिए उनके अलग कर देने पर चरम समयवर्ती सवेदी जीवके द्वारा अर्ध योगसे बद्ध द्विचरम फालि अधिक उपलब्ध होती है। अब अर्ध योग प्रक्षेप भागहारमात्र द्विचरम फालियोंको चरम फालिके प्रमाणसे करनेपर वे एक कम अधःप्रवृत्त भागहारसे भाजित अर्ध योग प्रक्षेपभागहारप्रमाण होती है, इसलिए द्विचरम समयवर्ती सवेदी जीवको अर्ध योगसे नीचे उतने अध्वानप्रमाण उतारना चाहिये । इस प्रकार इन योगोंसे परिणत हुए क्षपककी तीन फालियां उत्कृष्ट योगसे परिणत हुए क्षपककी एक फालि समान है, क्योंकि अधिक द्रव्यका अपवर्तन हो गया है । ९ ३७१. अब इस द्विचरम समयवर्ती सवेदो जीवको एक एक प्रक्षेप अधिकके क्रमसे अध योगके प्राप्त होने तक बढ़ाना चाहिए । इस प्रकार बढ़ाने पर पहले अर्ध योगसे बांधी गई द्विचरम फालि एक एक प्रक्षेप अधिकके क्रमसे समस्त बढ़ गई है । अब अर्ध योगसे ऊपर द्विचरम समयवर्ती सवेदी जीवके एक एक प्रक्षेप अधिकके क्रमसे उत्कृष्ट योगस्थानके प्राप्त होने तक बढ़ाने पर चरम फालिके अध भाग प्रक्षेप भागहारमात्र स्थान • प्राप्त होते हैं । अब सवेदी जोवके चरम समय में उत्कृष्ट योगसे तथा द्विचरम समय में अर्ध योगसे पुरुषवेदको बाँधकर अधिकृत द्विचरम समय में स्थित हुए जीवके तीन फालियोंका द्रव्य पहलेकी तीन फालियों के द्रव्यसे विशेष अधिक है, क्योंकि जितने स्थान आगे गये हैं उतनी द्विचरम फालियां अधिक उपलब्ध होती हैं । पुनः इन अधिक द्विचरम फालियोंको चरम फालिके प्रमाणसे करने पर एक कम अधःप्रवृत्त भागहारसे भाजित अर्ध योग प्रक्षेप भागहार प्रमाण चरम फालियां होती हैं, इसलिए फिर भी अर्ध योगसे नोचे १. आ०प्रतौ ' कमेण बढावेदव्वं । एवं गेदब्वं इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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