Book Title: Kasaypahudam Part 06
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 329
________________ ३१० __ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ तप्पाओग्गजहण्णजोगेण तस्सेव दुचरिम-चरिमसमएसु उक्कस्सजोगेण बंधिदूण अधियारतिचरिमसमयम्मि द्विदस्स छप्फालीओ भवंति । संपहि चरिमसमयसवेदेण बद्धसमयपबद्धस्स चरिम-दुचरिमफालीओ दुचरिमसमयसवेदेण बद्धसमयपबद्धस्स चरमफालिसहिदाओ तिण्णि फालीओ पुव्विल्लुक्कस्सतिणिफालीहि सरिसाओ। संपहि चरिमसमयसवेदस्स तिचरिमफाली दुचरिमसमयसवेदस्स दुचरिमफाली तप्पाओग्गजहण्णजोगेण बद्धतिचरिमसमयसवेदस्स चरिमफाली च अंतरं होदूण एवं छप्फालिहाणमुप्पण्ण । णवरि पुव्विल्लंतरादो इदमंतरं विसेसाहियं, उक्कस्सजोगेण बद्धसमयपबद्धस्स तिचरिमफालीए अहियत्तवलंभादो। संपहि इदमंतरं चरिमफालिपमाणेण कस्सामो। तं जहा-रूवूणअधापवत्तभागहारमेत दुचरिमफालीणं जदि एगं चरिमफालिपमाणं लब्भदि तो उक्कस्सजोगट्ठाणपक्खेवभागहारं रूवूणअधापवत्तभागहारेण खंडेदूण तत्थ' एगखंडेणब्भहियदुगुणुकस्सजोगट्ठाणपक्खेवभागहारमेत्तदुचरिमफालीणं किं लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए चरिमफालीओ लन्भंति । एदासु तप्पाओग्गजहण्णजोगतिचरिमसमयसवेदचरिमफालीसु पक्खित्तासु अंतरपमाणं होदि । संपहि तिचरिमसमयसवेदतप्पाओग्गजहण्णजोगहाणप्पहुडि पक्खेवुत्तरकमेण वड्ढावेदव्वं जाव जो सवेदी जीव त्रिचरम समयमें तत्प्रायोग्य जघन्य योगसे तथा द्विचरम और चरम समय में उत्कृष्ट योगसे बन्ध करके विवक्षित त्रिचरम समयमें स्थित है उसीके छह फालियाँ हैं। अब द्विचरम सवेदी जीवके द्वारा बाँधे गये समयप्रबद्ध की अन्तिम फालिके साथ अन्तिम समयवर्ती सवेदी जीवके द्वारा बांधे गये समयप्रबद्धकी अन्तिम और द्विचरम फालि मिलकर ये तीन फालियाँ पहलेको उत्कृष्ट तीन फालियोंके समान हैं। अब अन्तिम समयवर्ती सवेदी जीबकी त्रिचरम फालि, द्विचरम समयवर्ती सवेदी जीवकी द्विचरम फालि और त्रिचरम समयवर्ती सवेदी जीवकी तत्प्रायोग्य जघन्य योगसे बाँधी गई चरम फालि इनका अन्तर होकर यह छह फालिरूप स्थान उत्पन्न हुआ है। इतनी विशेषता है कि पहलेके अन्तरसे यह अन्तर विशेष अधिक है, क्योंकि उत्कृष्ट योगसे बाँधा गया समयप्रबद्ध त्रिचरम फालिरूपसे अधिक पाया जाता है। अब इस अन्तरको अन्तिम फालिके प्रमाणरूपसे करते हैं । यथा-एक कम अधःप्रवृत्त भागहारप्रमाण द्विचरम फालियोंमें यदि एक अन्तिम फालिका प्रमाण उपलब्ध होता है तो उत्कृष्ट योगस्थानके प्रक्षेप भागहारको एक कम अधःप्रवृत्तभागहारसे खण्डित करके वहां पर एक खण्डसे अधिक दुगुणे उत्कृष्ट योगस्थानके प्रक्षेप भागहारमात्र द्विचरम फालियोंमें क्या प्राप्त होगा, इसप्रकार फलराशिसे गुणित इच्छाराशिमें प्रमाणराशिका भाग देने पर अन्तिम फालियाँ प्राप्त होती हैं। इनमें तत्प्रायोग्य जघन्य योगसे प्राप्त त्रिचरम समयवर्ती सवेदी जीवकी चरम फालियोंके प्रक्षिप्त करने पर अन्तरका प्रमाण होता है । अब त्रिचरम समयवर्ती सवेदी जीवके तत्प्रायोग्य जघन्य योग स्थानसे लेकर उशष्ट योगस्थानके प्राप्त होने तक एक-एक प्रक्षेप अधिकके क्रमसे बढ़ाना १. ता०प्रतौ 'दुचरिमसमएसु' इति पाठः । २. श्रा०प्रतौ -तिण्णिफालीओ सरिसायो' इति पाठः । ३. श्रा०प्रतौ 'इदमुत्तरं' इति पाठः । ४. प्रा०प्रतौ 'खंडेदूण ण वत्थ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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