Book Title: Kasaypahudam Part 06
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 333
________________ ३२२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पदेसविहत्ती ५ उक्कस्सजोगेण परिणमणसत्तीए अभावादो । संपहि एत्थतणउक्कस्सजोगच रिमफाली पुच्चिल्लचरिमफाली च सरिसाओ, उक्कस्सजोगहाणपरिणामेण समाणत्तादो । $ ३६२. संपहि उक्कस्सजोगदुचरिमफाली तप्पा ओग्गजहण्णजोगेण बद्ध चरिमफाली च एत्थ अंतरं होदि । एदेण अंतरेण विणा जहा तिणिफालिखगट्टाणमुप्पञ्जदि तहा वत्तइस्लामो । तं जहा — उक्कस्सजोगस्स सेढीए असंखे०भागमेत्तपक्खेवभागहारपमाणदु चरिमफालीओ ताव चरिम- दुचरिमपमाणेण कस्सामो | अधापवत्तमेतदुचरिमाणं जदि एगं चरिम- दुचरिमपमाणं लब्भदि तो सेढीए असंखे० भागमेत्तचरिम-दुचरिमाणं केत्तियाओ चरिम- दुचरिमफालीओ लभामो ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए अवद्विदाए अधापवत्तेण उक्कस्सजोगट्टाणद्धाणं खंडेदू तत्थ एगखंडमेत्ताओ होंति । एत्तियमेत्तमद्वाणं दोफालिसामीओ ओदारेदव्वो । एवमोदारिदे दुचरिमफालिमस्सिद्ण जमंतरं तं गति दट्ठव्वं । ९ ३६३. संपहि तप्पाओग्गजहण्णजोग चरिमफालिजणिदअंतरपरिहाणि कस्सामो । तं जहा - अधापवत्तभागहारमेत्तचरिमफालीणं जदि रूवूणअधापवत्तभागहारमेतचरिमदुचरिमफालीओ लब्भंति तो तप्पा ओग्गजहण्णजोगिणो अद्धाणादो योगरूपसे परिणमन करनेकी शक्तिका अभाव है । अब यहाँकी उत्कृष्ट योगसम्बन्धी अन्तिम फालि और पहलेकी अन्तिम फालि समान है, क्योंकि उत्कृष्ट योगस्थानके परिणामरूप से समानता है । § ३६२. अब उत्कृष्ट योगसम्बन्धी द्विचरम फालि और तत्प्रायोग्य जघन्य योग द्वारा बद्ध चरम फालि यहाँ पर अन्तर होता है । इस अन्तरके बिना जिस प्रकार तीन फालिरूप क्षपकस्थान उत्पन्न होता है उस प्रकार बतलाते हैं । यथा - उत्कृष्ट योगकी जगश्रेणिके असंख्यातवें भागमात्र प्रक्षेपभाग हारप्रमाण द्विचरम फालियोंको चरम और द्विचरम प्रमाणरूपसे करते हैं । अधःप्रवृत्तमात्र द्विचरमोंका यदि एक चरम और द्विचरमप्रमाण उपलब्ध होता है तो जगश्रेणिके असंख्यातवें भागप्रमाण चरम और द्विचरमोंकी कितनी चरम और द्विचरम फालियाँ प्राप्त होंगी, इस प्रकार फलराशिसे गुणित इच्छाराशिमें प्रमाणराशिका भाग देने पर अधःप्रवृत्त से उत्कृष्ट योगस्थान अध्वानको भाजित करके वहाँ एक खण्डप्रमाण होती हैं । दो फालियोंके स्वामीको इतना मात्र अध्वान उतारना चाहिए । इस प्रकार उतारने पर द्विचरम फालिका आश्रय लेकर जो अन्तर है वह नष्ट हो गया ऐसा जानना चाहिए । ९३६३. अब तत्प्रायोग्य जघन्य योगकी अन्तिम फालिसे उत्पन्न हुए अन्तरकी परिहानिको करते हैं । यथा - अधःप्रवृत्तभागहारप्रमाण अन्तिम फालियोंकी यदि एक कम अधःप्रवृत्तभागहारप्रमाण चरम और द्विचरम फालियाँ उपलब्ध होती हैं तो तत्प्रायोग्य जघन्य योग १. आ०प्रतौ 'बद्धचरिमफालीए च एत्थ' इति पाठः । २ श्र०प्रतौ ' -भागमेत्तदुचरिमाणं' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404