Book Title: Kasaypahudam Part 06
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 306
________________ गा० २२] उत्तर पयडिपदेसविहत्तीए सामित्तं २९५ ____३१४. कुदो ? अवेदस्स पढमावलियाए दुसमयूणाए बंधावलियं गमिय पढमावलियदुचरिमसमए तस्स समयपबद्धस्स संकमपारंभादो । तिचरिमसमए अकम्म होदि, बद्धसमयादो गणिजमाणे तत्थ संपुण्णाणं दोण्हमावलियाणमुवलंभादो। * एदेण कमेण चरिमावलियाए पढमसमयसवेदेण जं बद्ध तमवेदस्स पढमावलियाए चरिमसमए अकम्मं होदि। ३१५. पुन्विल्लकमं संभरिदूण णिज्जदि ति जाणावणहमेदेण कमेणे त्ति णिद्देसो कदो। जं तिचरिमसमयसवेदेण बद्धं तमवेदस्स विदियाए आवलियाए पंचचरिमसमयादो त्ति दिस्सदि । जं चदुचरिमसमयसवेदेण बद्धं तमवेदस्स विदियाए आवलियाए छचरिमसमयादो त्ति दिस्सदि । एवं णेदव्वमिदि भणिदं होदि । सवेदचरिमावलियाए पढमसमए वट्टमाणसवेदेण जं बद्धं तमवेदस्स पढमावलियाए चरिमसमए अकम्मं होदि। कुदो ? बद्धसमयादो गणिजमाणे अवगदवेदस्स पढमावलियाए चरिमसमए बंधावलिया संकमणावलिया ति संपुण्णाणं दोण्हमावलियाणं पमाणुवलंभादो। ण च णवगसमयपबद्धो समयूणदोआवलियाहिंतो अहियं कालमच्छदि, विप्पडिसेहादो। 8 ज सवेदस्स दुचरिमाए प्रावलियाए पढमसमए पषद्धं तं चरिम प्राप्त होता है। $ ३१४. क्योंकि अपगतवेदीकी दो समय कम पहली आवलिसे बन्धावलिको बिताकर पहली आवलिके द्विचरम समयमें उस समयप्रबद्धके संक्रमणका प्रारम्भ होता है और अपगतवेदीकी दूसरी आवलिके त्रिचरम समयमें वह समयप्रबद्ध अकर्मभावको प्राप्त होता है, क्योंकि बन्ध समयसे लेकर यहां तक गिनने पर पूरी दो आवलियां पाई जाती हैं। * इस क्रमसे अन्तिम आवलिके प्रथम समयवर्ती सवेदीने जो कर्म बांधा वह अवेदीके पहली आवलिके अन्तिम समयमें अकर्मभावको प्राप्त होता है। ६३१५. पहलेके क्रमका स्मरण करके आगे लेजाना नाहिये यह जताने के लिये सूत्र में 'इस क्रमसे' इस पदका निर्देश किया है। जो कर्म सवेदीने अपने द्विचरम समयमें बांधा है वह अपगतवेदीके दुसरी आवलिके पाँच चरम समय तक दिखाई देता है। जो कर्म सवेदीने अपने चार चरम समयमें बांधा है वह अपगतवेदीके दूसरी आवलिके छह चरम समय तक दिखलाई देता है। इसी प्रकार लेजाना चाहिये यह 'एदेण कमेण' इस पदके देने का तात्पर्य है । सवेद भागकी अन्तिम आवलिके प्रथम समयमें विद्यमान सवेदीने जो कर्म बांधा वह अपगतवेदीके प्रथम आवलिके अन्तिम समयमें अकर्मभावको प्राप्त होता है, क्योंकि कर्मबन्धके समयसे गिनती करने पर अपगतवेदीके पहिली आवलिके अन्तिम समयमें बन्धावलि और संक्रमणावलि इस प्रकार बहां तक पूरी दो आवलियोंका प्रमाण पाया जाता है और नवक समयप्रबद्ध एक समय कम दो आवलिसे अधिक काल तक रहता नहीं है, क्योंकि और अधिक काल तक इसके रहनेका निषेध है। 8 सवेदीने अपनी द्वि चरमावलीके प्रथम समयमें जो कर्म बांधा वह सवेदीके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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