Book Title: Kasaypahudam Part 06
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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उत्तरपय डिपदेसविहत्तीए सामित्तं
गा० २२]
च एदे समयबद्ध अवेदो लहदि ।
३१९. जेण एत्तिए समयपचद्धे पढमसमयअवेदो लहदि त्ति तेण जं पुब्बं भणिदं पढमसमयअवेदो दोआवलियाओ दुसमयूणाओ लहदि ति तं सुहासियं । पदमसमयअव दम्मि एत्तिया समयपबद्धा अस्थि ति किमट्ठे परूवणा कीरदे १ अवगदव दपढमसमए जहण्णसामित्तं किण्ण दिण्णमिदि पच्चवहिद सिस्सस्स विपडिवत्तिणिराकरणडौं । जेणेदं सुत्तं देसामासियं तेण विदियसमयअवगदवेदो वि ण जहण्णदव्वसामी, तत्थ तिसमयूणदोआवलियमेत्तसमयपबद्धाणमुवलंभादो । तदियसमय अवगदव दो वि ण जहण्णदव्वसामी, चदुसमयूणदोआवलियमेत्त समयपबद्धाणं तत्थुवलंभादो एवं गंतूण तिसमयूणदो आवलियअवगदव दो वि ण जहण्णदव्वसामी, तत्थ दोन्हं समयपबद्धाणमुवलंभादो । दुसमयूणदोआवलियअवगदव दो पुण जहण्णदव्वसामी होदि, तत्थ घोलमाणजहण्णजोगेण बद्धेगसमयपबद्धस्स चरिमफालीए चेव उवलंभादो |
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* एसा ताव एक्का परूवणा ।
§ ३२०. एसा परूवणा जहण्णदव्वपमाणपरूवणहं अवगदवेदेसुप्पजमाणहाणाणं णिबंधणावगमण' 'च कदा |
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सम्बन्धी ये सब समयप्रबद्ध पाये जाते हैं ।
३१९. चूंकि इतने समयप्रबद्ध अपगतवेदी जीव अपने प्रथम समय में प्राप्त करता है, इसलिये पहले जो यह कहा है कि प्रथम समयवर्ती अपगतवेदीके दो समय कम दो आवलिप्रमाण समयप्रबद्ध पाये जाते हैं वह ठीक ही कहा है ।
कथन किसलिये
शंका- अपगतवेदी के प्रथम समय में इतने समयबद्ध हैं यह किया है ? समाधान - पुरुषवेदका जघन्य स्वामी अपगतवेदके प्रथम समय में क्यों नहीं बतलाया इस प्रकार जिस शिष्यको शंका है उसके निराकरण करनेके लिये उक्त कथन किया है ।
चूंकि यह सूत्र देशामर्षक है इसलिये इससे यह भी निष्कर्ष निकलता है कि द्वितीय समवर्ती अपगतवेदी भी जघन्य द्रव्यका स्वामी नहीं है, क्यों कि वहाँ पर तीन समय कम दो आवलिप्रमाण समयप्रबद्ध पाये जाते हैं। तीसरे समय में स्थित अपगतवेदी भी जघन्य द्रव्यका स्वामी नहीं है, क्योंकि उसके चार समय कम दो ओवलप्रमाण समयप्रबद्ध पाये जाते हैं । इस प्रकार जाकर जिसे अपगतवेदी हुए तीन समय कम दो आवलि हो गये हैं वह भी जघन्य द्रव्यका स्वामी नहीं है, क्योंकि वहाँ दो समयप्रबद्ध पाये जाते हैं । किन्तु जिसे अपगतवेदी हुए दो समय कम दो आवलि हुए हैं वह जघन्य द्रव्यका स्वामी है, क्योंकि वहाँ पर जघन्य परिणामयोगके द्वारा बाँधे गये एक समयप्रबद्ध की अन्तिम फालि ही पाई जाती है ।
* यह एक प्ररूपणा है ।
३२०. जघन्य द्रव्यके प्रमाणका कथन करनेके लिये और अपगतवेदियों में उत्पन्न होनेवाले स्थानोंके कारणका ज्ञान करानेके लिये यह प्ररूपणा की है।
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