Book Title: Kasaypahudam Part 06
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२]
उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए सामित्तं समयपबद्धाणं सेसदव्वस्स विसरिसत्तं किण्ण जायदे ? ण, विदियट्ठिदीए अवद्विदत्तणेण अवगदव दम्मि पुरिसवे दपढमहिदीए अभावादो च विसरिसत्तासंभवादो' । दुचरिमावलियाए पबद्धाणं पढमहिदी अस्थि त्ति उदए परिगलणं पडुच विसरिसत्तं किण्ण जायदे ? ण, आवलिय-पडिआवलियासु सेसासु आगाल-पडिआगालवोच्छेदेण विदियहिदीए हिददव्वस्स पढमहिदीए आगमणाभावादो। तेण सिद्धं सव्वसमयपबद्धाणं' सरिसत्तं ।
8 एदाहि दोहि परूवणाहि पदेससंतकम्मट्ठाणाणि परूवेदव्वाणि ।
६ ३२५. एगसमयपबद्धमादि कादूण जाव दुसमयूणदोआवलियमेत्तसमयपबद्धाणं परूवणा एगं बीजपदं, जहण्णजोगट्ठाणप्पहुडि सव्वजोगहाणाणि अवलंबिय सांतराणं संतकम्महाणाणमुप्पत्तिणिमित्तत्तादो। णिरंतराणि ठाणाणि एस्थ किण्ण होति ? ण, एगजोगपक्खेवेण एगसमयपबद्धस्स असंखे०भागमेत्तकम्मपरमाणूणभागमणुवलंभादो । बंधावलियादीदसमयपबद्धाणं परपयडिसंकमो सांतरसंतकम्मट्ठाणाणं विदियं बीजपदं ।
कथन करना चाहिये।
शंका-अपकर्षणके द्वारा उदयमें डालकर गलन हो जाने पर दोनों समयप्रबद्धोंका शेष द्रव्य विसदृश क्यों नहीं हो जाता ?
समाधान नहीं, क्योंकि दूसरी स्थितिमें अवस्थित होनेके कारण और अपगतवेद अवस्थामें पुरुषवेदकी प्रथम स्थितिका अभाव होनेसे उनका विसदृश होना सम्भव नहीं है।
शंका-द्विचरमावलिमें बंधे हुए समयप्रबद्धोंकी प्रथम स्थिति है, इसलिये इनका द्रव्य उदयको प्राप्त होकर गलता रहता है, अतएव इनमें विसदृशता क्यों नहीं पाई जाती ?
समाधान नहीं, क्योंकि आवलि और प्रत्यावलिके शेष रहने पर आगाल और प्रत्यागालकी व्युच्छित्ति हो जानेके कारण दूसरी स्थितिमें स्थित द्रव्यका प्रथम स्थितिमें आगमन नहीं पाया जाता, इसलिये समयप्रबद्ध की समानता सिद्ध होती है।
ॐ इन दोनों प्ररूपणाओंक द्वारा प्रदेशसत्कर्मस्थानोंका कथन करना चाहिये।
६३२५. एक समयप्रबद्धसे लेकर दो समय कम दो आवलिप्रमाण समयप्रबद्धोंकी प्ररूपणा यह एक बीजपद है, क्योंकि यह जघन्य योगस्थानसे लेकर सब योगस्थानोंकी अपेक्षा सान्तर सत्कर्मस्थानोंको उत्पत्तिका निमित्त है।
शंका-यहां निरन्तर स्थान क्यों नहीं होते ?
समाधान-नहीं, क्योंकि एक योगके एक प्रक्षेप द्वारा एक समयप्रबद्ध के असंख्यातवें भागप्रमाण कर्मपरमाणुओंका आगमन पाया जाता है।
बन्धावलि के बाद समयप्रबद्धोंका अन्य प्रकृतिमें संक्रमण होना यह सान्तर सत्कर्मस्थानोंका दूसरा बीजपद है।
१. आ० प्रती 'च 'सरिसत्तासंभवादो' इति पाठः । २. प्रा०प्रतौ 'सिद्धं समयपबद्धाणं' इति पाठः ।
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