Book Title: Kasaypahudam Part 06
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ संजमगुणसेढिणिज्जरं करिय पुणो सिज्झणकालेण सव्वजहण्णमंतोमुहुत्तावसेसे चारित्तमोहक्खवणाए अब्भुट्ठिय णसयवेदचरिमफालिं पुरिसव दसरूवण संचारिय एगणिसेगमेगसमयकालं धरेदण द्विदो सरिसो।।
___$ २८६. संपहि एदस्स दव्वं परमाणुत्तरकमेण एगगोवच्छविसेसमेत्तं वड्ढावेदव्वं । एवं वड्डिदेण अण्णेगो समयूणपुव्वकोडीए उववजिय णवंसयवदं खविय एगणिसेगमेगसमयकालं धरिय द्विदो सरिसो। एवं समयूणादिकमेण सव्वा पुव्वकोडी ओदारदव्या जाव अंतोमुहुत्तब्महियअट्ठवस्साणि चेद्विदाणि ति । खविदकम्मंसियलक्खणेणागंतूण मणुस्सेसुववन्जिय सव्वल हुं जोणिणिक्खमणजम्मणेण अंतोमुहुत्तब्भहियअदुवस्साणि गमिय पुणो सम्मत्तं संजमं च जुगव घेत्तण अणंताणुबंधिचउकं विसंजोइय दंसणमोहणीयं खविय चारित्तमोहक्खवणाए अब्भुद्धिय खविय एगणिसेगमेगसमयकालं धरेदूण द्विदं पावदि ताव ओदिण्णो त्ति घेत्तव्व। ___$ २८७. संपहि एवं दव्व खविदकम्मंसियमस्सिदूण दोहि वड्डोहि खविद-गुणिद-घोलमाणे अस्सिदूण पंचहि वड्डीहि गुणिदकम्मंसियमस्सिदूण दोहि वड्डीहि वड्ढावेदव्वं जाव एगो गुणिदकम्मंसियलक्खणेणागंतूण ईसाणदेव सुववजिय पुणो तत्थ णqसयव दमुक्कस्सं करिय मणुस्सेसुववजिय पणो जोणिणिक्खमणजम्मणण' और संयमको एक साथ प्राप्त हुआ। अनन्तर संयमसम्बन्धी गुणश्रोणिकी निर्जरा करता हुआ जब सिद्ध होनेके लिये सबसे जघन्य अन्तर्मुहूर्त काल शेष रह जाय तब चारित्रमोहनीयकी क्षपणाके लिए उद्यत हो और नपुसकवेदकी अन्तिम फालिको धारण करके स्थित है।
२८६. अब इसके द्रव्यको उत्तरोत्तर एक एक परमाणुके क्रमसे एक गोपुच्छविशेषके बढ़नेतक बढ़ाते जाना चाहिये । इस प्रकार बढ़ाकर स्थित हुए इस जीवके समान एक अन्य जीव है जो एक समय कम पूर्वकोटिकी आयुके साथ उत्पन्न हो नपुसकवेदका क्षय करता हुआ दो समयकी स्थितिवाले एक निषेकको धारण कर स्थित है। इस प्रकार उत्तरोत्तर एक समय कमके क्रमसे अन्तर्मुहूर्त अधिक आठ वर्ष रहने तक पूरी पूर्वकोटिको उतारते जाना चाहिये । तात्पर्य यह है कि क्षपितकर्मा शकी विधिसे आकर मनुष्योंमें उत्पन्न हो, अतिशीघ्र योनिसे निकलनेरूप जन्मसे लेकर अन्तर्मुहूर्त अधिक आठ वर्ष बिताकर फिर सम्यक्त्व और संयमको एक साथ प्राप्त कर, अनतानुबन्धीचतुष्कको विसंयोजना कर, दर्शनमोहनीयकी क्षपणा कर, चरित्रमोहनीयकी क्षपणाके लिए उद्यत हो नपुंसकवेदका क्षय करते हुए एक समयकी स्थितिले एक निषेकको धारण कर स्थित हुए जीवके प्राप्त होनेतक उतारना चाहिये।
६२८७. अब इस द्रव्यको क्षपितकर्मा की अपेक्षा दो बृद्धियोंके द्वारा क्षपितोगुणित और घोलमान कर्मा शकी अपेक्षा पाँच वृद्धियोंके द्वारा और गुणितकर्मा शकी अपेक्षा द वृद्धियोंके द्वारा तब तक बढ़ाते जाना चाहिये जब जाकर गुणितकर्मा शकी विधिसे आकर ईशान स्वर्गके देवोंमें उत्पन्न हो फिर वहाँ नपुसकवेदको उत्कृष्ट करके पश्चात् मनुष्यों में
१. आ०प्रतौ 'जोणिणिक्कमणजम्मण' इति पाठः । २. आप्रतौ 'जोणिणिक्कमणजम्मणेण' इति पाठः ।
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