Book Title: Kasaypahudam Part 06
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२] उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए सामित्तं
२७९ अंतोमुहुत्तम्भहियअवस्सिओ होदूण चारित्तमोहक्खवणाए अब्भुहिय णवंसयवेदचरिमफालिं पुरिसवेदस्त संचारिय एगणिसेगमेगसमयकालं धरेदण हिदो ति । णवरि पढमवारमपुव्वगुणसेढिगोवुच्छा विदियवारं विगिदिगोवुच्छा तदियवारं पयडिगोवुच्छा समयाविरोहेण वड्ढावेदव्वा । एवं वड्डाविदे अणंतेहि ठाणेहि एगं फद्दयं होदि ।
२८८. संपहि गुणिदकम्मंसियमस्सिदण कालपरिहाणीए ठाणपरूवणं कस्सामो । तं जहा–खविदकम्मंसियलक्खणेणागंतूण तिण्णि पलिदोवमाणि वेछावहीओ च भमिय मिच्छत्तं गंतूण पुणो पुवकोडीए उवववजिय णqसयवेदं खविय एगणिसेगं एगसमयकालं धरेदूण द्विदम्मि जहण्णदव्वं होदि । संपहि एदस्स जहण्णदव्वस्स वड्डावणकमोवुच्चदे। तं जहा—अपुवकरणपरिणामेसुअंतोमुत्तकालभंतरे पुध पुध पंतियागारेण संठिदेसु तत्थ पढमसमयम्हि सव्वजहण्णपरिणामप्पहुडि जाव असंखेजलोगमेत्तपरिणामट्ठाणाणि उवरि गच्छंति ताव एदेहि परिणामेहि ओकड्डिदूण कीरमाणपदेसगुणसेढी सरिसा। कुदो ? साभावियादो। पुणो एत्तियमेत्तमद्धाणं गंतूण डिदपरिणामं परिणममाणस्त पदेसग्गं विसेसाहियं । केत्तियमेत्तेण ? जहण्णदव्वे असंखेजलोगेहि खंडिदे तत्थ एयखंडमेत्तेण । पुणो वि एत्तो उवरि असंखेजलोगमेत्तमद्धाणं उत्पन्न हो फिर योनिसे निकलनेरूप जन्मसे लेकर अन्तर्मुहुर्त अधिक आठ वर्षका होकर चारित्रमोहनीयकी क्षपणाके लिए उद्यत हो नपुसकवेदकी अन्तिम फालिको पुरुषवेदके ऊपर प्रक्षिप्त करके एक समयकी स्थितिवाले एक निषेकको धारण कर स्थित होवे । किन्तु इतनी विशेषता है कि पहली बार अपूर्वकरणकी गुणश्रोणिगोपुच्छाको दूसरी बार विकृतिगोपुच्छाको
और तीसरी बार प्रकृतिगोपुच्छाको यथाविधि बढ़ाना चाहिये । इस प्रकार बढ़ाने पर अनन्त स्थानोंको मिलाकर
६२८८. अब गुणितकर्मा शकी अपेक्षा कालकी हानि द्वारा स्थानोंका कथन करते हैं जो इस प्रकार हैं-जो क्षपितकर्मा शकी विधिसे आकर तथा तीन पल्य और दो छयासठ सागर काल तक भ्रमण कर अनन्तर मिथ्यात्वको प्राप्त हो फिर एक पूर्वकोटिकी आयुके साथ उत्पन्न हो नपुंसकवेदका क्षय करते हुए एक समयकी स्थितिवाले एक निषेकको धारण करके स्थित हुए जीवके जघन्य द्रव्य होता है। अब इस जघन्य द्रव्यको बढ़ानेका क्रम कहते हैं जो इस प्रकार है-अपूर्वकरणके परिणामोंको अन्तर्मुहूर्त कालके भीतर अलग अलग पंक्तिरूपसे स्थापित करे । फिर इनमेंसे पहले समयमें सबसे जघन्य परिणामसे लेकर असंख्यात लोकमात्र परिणामस्थान ऊपर जाने तक इन परिणामोंके द्वारा अपकर्षण होकर जो प्रदेशोंकी गुणश्रेणि रचना की जाती है वह समान है, क्योंकि एसा स्वभाव है। फिर इतना ही स्थान जाकर जो परिणाम स्थित है उससे प्राप्त होनेवाले प्रदेश विशेष अधिक है।
शंका-कितने अधिक हैं ?
समाधान-जघन्य द्रव्यमें असंख्यात लोकका भाग देनेपर जो एक भाग प्राप्त हो उतने अधिक हैं।
फिर भी यहांसे आगे असंख्यात लोकमात्र स्थानोंके प्राप्त होने तक इन परिणामों के 1. प्रा०प्रतौ 'कीरमाणा' इति पाठः। ..............................
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