Book Title: Kasaypahudam Part 06
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
View full book text
________________
१३८
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ १३७. कुदो एदिस्से पगदिगोवुच्छत्तं ? हिदिकंडयदव्वेण विणा उक्कड्डणाए जहाणिसित्तपदेसग्गहणादो। ण णिसेगहिदीए जहाणिसेगसरूवेणावहाणं, ओकड्डणाए तिस्से वयदंसणादो ? ण एस दोसो, तत्थतणआय-व्वयाणं सरिसत्तणेण तिस्से विगिदित्ताभावादो। आय-व्वयाणं सरिसत्तं कुदो णव्वदे १ जुत्तीदो। तं जहादिवड्डगुणहाणिगुणिदेगसमयपबद्धे पगदिगोवुच्छाभागहारेण ओकड्डुक्कड्डणभागहारगुणिदेण ओवट्टिदे पयडिगोवुच्छाए वओ होदि । पुणो दिवड्डगुणहाणिगुणिदेगसमयपबद्धे वेछावहिसागरोवमकालगलिदसेसदव्वभागहारेण दिवड्डगुणहाणिगुणिदओकडुकड्डणभागहारगुणिदेण ओवट्टिदे तिस्से आओ । एदे बे वि आय-व्वया सरिसा । कुदो ? उभयस्थ अवहिरिजमाणे समाणे संते वेओकड्डक्कड्डणभागहारगुणिदवेछावट्ठिणाणागुण. हाणिसलागण्णोण्णन्भत्थरासीए पदुप्पायिददिवडगुणहाणिभागहारस्स सरिसत्तुवलंभादो त्ति ।
६ १३७. शंका-इसे प्रकृतिगोपुच्छा क्यों कहते हैं ?
समाधान-क्योंकि इसमें स्थितिकाण्डकके द्रव्यके विना उत्कर्षणके द्वारा यथा निक्षिप्त प्रदेशोंका ही ग्रहण होता है, अतः इसे प्रकृतिगोपुच्छा कहते हैं।
शंका-निषेक स्थितिमें जिस क्रमसे निषेकोंकी रचना होती है उस क्रमसे अवस्थान नहीं रहता, क्योंकि अपकर्षणके द्वारा उसका विनाश देखा जाता है ?
समाधान—यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि निषेकस्थितिमें आय और व्ययके समान होनेसे वह विकृतिगोपुच्छा नहीं हो सकती।
शंका-वहां आय और व्यय समान होते हैं यह किस प्रमाणसे जाना ?
समाधान—युक्तिसे जाना। वह युक्ति इस प्रकार है-डेढ़ गुणहानिगुणित एक समयप्रबद्ध में अपकर्षण-उत्कर्षण भागहारसे गुणित प्रकृतिगोपुच्छाके भागहारसे भाग देने पर प्रकृति गोपुच्छाका व्यय प्राप्त होता है। तथा डेढ़ गुणहानिसे गुणित जो अपकर्षण-उत्कर्षण भागहार है उससे गुणित जो दो छयासठ सागर कालसे गलितसे बाकी बचे द्रव्यका भागहार उससे डेढ़ गुणहानि गुणित एक समयप्रबद्धमें भाग देने पर प्रकृतिगोपुच्छाकी आय आती है। ये दोनों आय और व्यय समान हैं; क्योंकि दोनों जगह भाज्यराशिके समान होते हुए दो अपकर्षणउत्कर्षण भागहारसे गुणित दो छयासठ सागरकी नाना गुगहानिशलाकाओंकी अन्योन्याभ्यस्त राशिसे उत्पन्न हुआ डेढ़ गुणहानिका भागहार समान पाया जाता है।
विशेषार्थ-शंकाकारका कहना है कि उत्कर्षणके होने पर जिस क्रमसे निषेक स्थापित रहते हैं उसी क्रमसे नहीं रहते; क्योंकि स्थिति और अनुभागके बढ़ानेको उत्कर्षण कहते हैं और उनके घटानेको अपकर्षण कहते हैं। जिन प्रदेशोंमें स्थिति अनुभाग बढ़ाया जाता है उन्हें नीचेकी स्थितिसे उठाकर ऊपर की स्थितिमें डाल दिया जाता है और जिन प्रदेशोंमें स्थिति अनुभाग घटाया जाता है उन्हें ऊपरकी स्थितिसे उठाकर नीचेकी स्थितिमें फेक दिया जाता है। इसका उत्तर दिया गया कि आय और व्ययके समान होनेसे निषेकोंका स्वरूप ज्योंका
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org