Book Title: Kasaypahudam Part 06
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
View full book text
________________
२२६
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ उव्वेल्लिय द्विदो सरिसो। एदेण कमेणोदारेदव्वं जाव अंतोमुहुत्तूणविदियछावही
ओदिण्णा ति। ___$ २२१. संपहि एत्तो हेहा दोहि पयारेहि ओयरणं संभवदि । तत्थ ताव समयूणादिकम णोदारणोवाओ उच्चदे । तं जहा–एदस्स दव्वस्सुवरि परमाणुत्तरकमण समयूणावलियमेत्तगोवुच्छविसेसा विज्झादसंकमेणागददव्वेण्णमेगसमयमोकड्डिय विणासिददव्वं च वड्ढावेदव्वं । एदेण पढमछावहिसम्मत्तकालचरिमसमए सम्मामिच्छत्तं पडिवजिय अवडिदं सम्मामिच्छत्तद्धमच्छिय सम्मामिच्छत्तचरिमसमए सम्मत्तं घेत्तूण तेण सह जहणंतोमुहुत्तमच्छिय पुणो मिच्छत्तं गंतूण दीहुव्वल्लणकालेणुव्वल्लिय समयूणावलियमेत्तगोवुच्छं ओदरिय द्विदो सरिसो।
६ २२२. एवं दुसमयूणादिकमेण ओदारेदव्वं जाव सम्मामिच्छत्तपढमसमओ त्ति । एवमोदारिय हिदेण अण्णेगो पढमछावट्ठीए सम्मामिच्छत्तं पडिवञ्जमाणहाणे सम्मामिच्छत्तमपडिवजिय मिच्छत्तं गतूणुव्वेल्लिय हिदो सरिसो। एत्तो प्पहुडि समयूणादिकमेणोदारिजमाणे जहा विदियछावही ओदारिदा तहा ओदारेदव्व।
१ २२३. संपहि एगवारेणोदारिजमाणे विदियछावहिपढमसमए सम्मत्तं घेत्तूण तत्थ जहण्णमंतोमुहुत्तमच्छिय मिच्छत्तं गंतूणुव्वोल्लिय समयूणावलियमेत्तगोवुच्छाण
तक भ्रमण कर और उद्वेलना कर स्थित है। इस क्रमसे अन्तर्मुहूर्त कम दूसरा छयासठ सागर काल व्यतीत होनेतक उतारते जाना चाहिये।
६२२१. अब इससे नीचे दोनों प्रकारसे उतारना सम्भव है। उसमेंसे पहले एक समय कम आदिके क्रमसे उतारनेकी विधि कहते हैं । वह इस प्रकार है-इस द्रव्यके ऊपर एम परमाणु अधिकके क्रमसे एक समयकम आवलिप्रमाण गोपच्छाविशेषोंको और विध्यात संक्रमणके द्वारा प्राप्त हुए द्रव्यसे न्यून एक समयमें अपकर्षण द्वारा नाश होनेवाले द्रव्यको बढ़ाना चाहिये । इस जीवके साथ एक अन्य जीव समान है जो प्रथम छयासठ सागर कालके भीतर वेदकसम्यक्त्वके कालके अन्तिम समयमें सम्यग्मिथ्यात्वको प्राप्त होकर और सम्यग्मिथ्यात्वके अवस्थित काल तक उसके साथ रहकर फिर सम्यग्मिथ्यात्वके अन्तिम समयमें सम्यक्त्वको ग्रहण कर उसके साथ जघन्य अन्तर्मुहूर्त काल तक रहकर फिर मिथ्यात्वमें जाकर उत्कृष्ट उद्धलना कालके द्वारा उद्वेलना करके एक समय कम आवलिप्रमाण गोपुच्छा उत्तरकर स्थित है।
६२२२. इस प्रकार दो समय कम आदिके क्रमसे सम्यग्मिथ्यात्वके प्रथम समय तक उतारना चाहिये । इस प्रकार उतार कर स्थित हुए जीवके साथ अन्य एक जीव समान है जो प्रथम छयासठ सागर कालके भीतर सम्यग्मिथ्यात्वको प्राप्त करनेके स्थानमें सभ्यग्मिथ्यावको प्राप्त हुए बिना मिथ्यात्वमें जाकर और उद्वेलना करके स्थित है। इससे आगे एक समयकम आदिके क्रमसे उतारने पर जिस प्रकार दूसरे छयासठ सागर कालको उतरवाया है उसी प्रकार उतरवाना चाहिये।
६२२३. अब एक साथ उतारने पर दूसरे छयासठ सागर कालके प्रथम समयमें सम्यक्त्वको ग्रहण करके और वहाँ जघन्य अन्तर्मुहूर्त काल तक रहकर फिर मिथ्यात्वमें जाकर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org