Book Title: Kasaypahudam Part 06
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
View full book text
________________
२२८
जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ व दगसम्म पडिबजमाणपढमसमए मिच्छत्तं गंतूण समऊणुवल्लणकालेणुव्वोल्लिय हिदो सरिसो। एवमुव्वल्लणकालो समयूण-दुसमयणादिकमेण ओदारेदव्यो जाव सव्वजहण्णत्तं पत्तो ति। __ २२५. पुणो समयूणावलियमेत्तगोवुच्छाओ चत्तारि पुरिसे अस्सिदूण परमाणुत्तरकमेण वड्ढावेदव्वाओ जान उकस्सत्तं पत्ताओ ति । णवरि पयडिगोवुच्छाओ परमाणुत्तरकमेण वडति' ण विगिदिगोवुच्छाओ, हिदिखंडए णिवदमाणे अक्कमेण तत्थ अणंताणं परमाणणं विगिदिगोवुच्छायारेण णिवादुवलंभादो। तेण विगिदिगोवुच्छाए उक्कडं कीरमाणाए पयडिगोवच्छमस्सिदूण अणंताणि णिरंतरहाणाणि उप्पादिय पुणो एगवारेण विगिदिगोवुच्छा वड्डावेदव्वा । तं जहा–खविदकम्मंसियलक्खणेणागंतूण उवसमसम्मत्तं पडिवन्जिय तस्सेव चरिमसमए मिच्छत्तं गंतूण सव्वजहण्णुव्वेल्लणकालेणुव्वेल्लिय समयूणावलियमेत्तजहण्णगोवुच्छाणमुवरि परमाणुत्तरं कादूणच्छिदे अण्णमपुणरुत्तहाणं होदि । एवं पयडिगोवुच्छाणमुवरि णिरंतरहाणाणि उप्पादेदव्वाणि जाव पढमुव्वेलणकंडए णिवदमाणे समयूणावलियमेत्तगोवुच्छासु पदिददव्यमेत्तहाणाणि उप्पण्णाणि त्ति । एवं वडिदण हिदेण' अण्णेगो खविदकम्मंसियलक्खणेणागंतूण उवसमसम्मत्तं पडिवन्जिय तच्चरिमसमए मिच्छत्तं गंतूण पुणो अंतोमुहुत्तेण पढमुव्वेल्लणकंडयं पयडिगोकुच्छाए उवरि वड्डाविदपरमाणुपुंजेणब्भहियं घादिय पुणो विदियादिकालके द्वारा उद्वेलना करके स्थित हुआ जीव समान है । इस प्रकार एक समय कम दो समय कम आदिके क्रमसे सबसे जघन्य उद्वेलना कालके प्राप्त होने तक उद्वेलना कालको उतारते जाना चाहिये।
६२२५. फिर एक समय कम आवलिप्रमाण गोपुच्छाओंको चार पुरुषोंकी अपेक्षा एक-एक परमाणु अधिकके क्रमसे उत्कृष्ट द्रव्यके प्राप्त होने तक बढाते जाना चाहिये । किन्तु इतनी विशेषता है कि प्रकृतिगोपुछाएं ही एक-एक परमाणु अधिकके क्रमसे बढ़ती हैं विकृतिगोपच्छाएं नहीं, क्योंकि स्थितिकाण्डकका पतन होने पर एक साथ ही वहां अनन्त परमाणुओंका विकृतिगोपच्छारूपसे पतन पाया जाता है, इसलिये विकृतिगोपुच्छाके उत्कृष्ट करने पर प्रकृति गोपुच्छाकी अपेक्षा अनन्त निरन्तर स्थानोंको उत्पन्न करके फिर एक साथ विकृतिगोपुच्छाको बढ़ाना चाहिये। यथा क्षपितकर्मा शकी विधिसे आकर और उपशमसम्यक्त्वको प्राप्त होकर फिर उसीके अन्तिम समयमें मिथ्यात्वमें जाकर सबसे जघन्य उद्वेलना कालके द्वारा उद्वेलना करके एक समय कम आवलिप्रमाण जघन्य गोपुच्छाओंके ऊपर एक परमाणु अधिक कर स्थित होनेपर अन्य अपुनरुक्त स्थान होता है । इस प्रकार प्रकृतिगोपुच्छाओंके ऊपर, प्रथम उद्वेलनाकाण्डकके पतन होने पर एक समयकम आवालिप्रमाण गोपुच्छाओंमें पतित द्रव्यसे उत्पन्न हुए स्थानोंके प्राप्त होने तक निरन्तर स्थान उत्पन्न करना चाहिये । इसप्रकार बढ़ाकर स्थित हुए इस जीवके साथ अन्य एक जीव समान है जो क्षपितकर्मा शकी विधिसे आकर उपशमसम्यक्त्वको प्राप्त हो उसके अन्तिम समयमें मिथ्यात्वमें जाकर फिर अन्तर्मुहूर्तमें प्रकृतिगोपुच्छाके ऊपर बढ़ाये गये परमाणुपुजसे अधिक प्रथम उद्वेलनाकाण्डकका
१. सा.प्रतौ 'वडिदं ति' इति पाठः। २. प्रा०प्रतौ 'वडिदूच्छिदेण' इति पाठः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org