Book Title: Kasaypahudam Part 06
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ 8 एवं चेष सम्मत्तस्स वि । ६२४२. जहा सम्मामिच्छत्तस्स जहण्णहाणादि जाव तदुक्कस्सहाणे ति सामित्तपरूवणा चदुहि पयारेहि कदा तहा सम्मत्तस्स वि कायव्वा, विसेसाभावादो । अधापवत्तपढमसमयम्मि वड्डाविजमाणे मिच्छत्तसरूवेण गदअधापवत्तदव्वमेत्तं तम्मि चेव त्थिउक्कसंकमण गदसम्मत्तगोवुच्छा चरिमसमयसम्मादिद्विस्स उदयगदतिण्णिगोवुच्छाओ च जेणेत्थ वहाविजंति तेण जहा सम्मामिच्छत्तस्स परूविदं तहा सम्मत्तस्स परूव दव्यमिदि ण घडदे ? किं चेत्थ सम्मादिहिम्मि ओदारिजमाणे सम्मामिच्छत्तमिच्छत्तेहिंतो सम्मत्तस्सागदविज्झाददव्वणसम्मत्तगोवुच्छा पुणो मिच्छत्त-सम्मामिच्छत्ताणं दोगोवुच्छविसेसा च सव्वत्थ वड्डाविजंति तेणेदेण वि कारणेण ण दोण्हं सामित्तार्ण सरिसत्तं । अण्णं च विदियछावहिसम्मत्तपढमसमयदव्वम्मि वड्डाविजमाणे विज्झादभागहारण मिच्छत्त-सम्मामिच्छत्तेहिंतो सम्मत्तस्सागददबणणा पढमलावट्ठीए अंतोमुहुत्तं हेहा ओसरिदूण हिदसम्मादिहिस्स अंतोमुहुत्तमेत्तमिच्छत्त-सम्मामिच्छत्तगोवुच्छविसेसेहि अमहियअंतोमुहुत्तमेत्तसम्मत्तगोवुच्छाओ वड्डाविजंति, अण्णहा विदियछावद्विपढमसमयादो अंतोमुहुत्तं हेडा ओदरिदूण हिदपढमछावहिचरिमसमय
* इसी प्रकार सम्यक्त्वके स्थानोंके स्वामित्वका भी कथन करना चाहिये।
२४२. जिस प्रकार सम्यग्मिथ्यात्वके जघन्य स्थानसे लेकर उसके उत्कृष्ट स्थानके प्राप्त होने तक स्वामित्वका कथन चार प्रकारसे किया है उसी प्रकार सम्यक्त्वका भी करना चाहिये, क्योंकि उससे इसमें कोई विशेषता नहीं है।
शंका-अधःप्रवृत्तके प्रथम समयमें द्रव्यके बढ़ाने पर यह द्रव्य बढ़ाया जाता हैएक तो अधःप्रवृत्तभागहारके द्वारा सम्यक्त्वका जितना द्रव्य मिथ्यात्वको प्राप्त होता है उसे बढ़ाया जाता है। दूसरे उसी समय जो स्तिवुक संक्रमणके द्वारा सम्यक्त्वकी गोपुच्छाका द्रव्य मिथ्यात्वको प्राप्त होता है उसे बढ़ाया जाता है और तीसरे सम्यग्दृष्टिके अन्तिम समयमें उदयको प्राप्त हुई तीन गोपुच्छाएँ बढ़ाई जाती हैं। चूंकि इतना द्रव्य बढ़ाया जाता है, इसलिये जिस प्रकार सम्यग्मिथ्यात्वके स्वामीका कथन किया है उस प्रकार सम्यक्त्वके स्वामीका कथन करना चाहिये, यह कथन नहीं बनता है ? दूसरे यहाँ सम्यग्दृष्टिको उतारने पर सम्यग्मिथ्यात्व और मिथ्यात्वके द्रव्यमेंसे विध्यातसंक्रमणके द्वारा सम्यक्त्वको प्राप्त होनेवाले द्रव्यसे कम सम्यक्त्वकी गोपुच्छाको तथा सर्वत्र मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी दो गोपुर छाविशेषोंको सर्वत्र बढ़ाया जाता है। इसलिये इस कारणसे भी दोनोंका स्वामित्व समान नहीं है ? तीसरे दूसरे छयासठ सागरके प्रथम समयमें सम्यक्त्वके द्रव्यको बढ़ाने पर विध्यात भागहारके द्वारा मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यास्वके द्रव्यमेंसे सम्यक्त्वको प्राप्त होनेवाले द्रव्यसे कम तथा पहले छयासठ सागरमें अन्तर्मुहूर्त नीचे उतर कर स्थित हुए सम्यग्दृष्टिके अन्तर्मुहूर्तप्रमाण मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी गोपुच्छाविशेषोंसे अधिक अन्तर्मुहूर्त प्रमाण सम्यक्त्वकी गोपुच्छाएँ बढ़ाई जाती हैं, अन्यथा दूसरे छयासठ सागरके प्रथम समयसे अन्तर्मुहूर्त नीचे
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