Book Title: Kasaypahudam Part 06
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गो० २२]
उत्तरपयडिपदेस विहन्तीए सामित्तं
मुवरि समयूणावलियाए गुणिदतो मुहुत्तमेतगोबुच्छविसेसा तेत्तियमेतकालमोकडणाए विणासिददव्वं परपयडिसंकमेण गददव्वं च मिच्छत्तादो जहण्णसम्मत्तद्धामेत्तकाल - मप्पणो दुकमाणविज्झादसंकमे दव्वेणूणं वड्डावे दव्वं । एवं वडिदूण हिदेण अवरेगो पढमछावहिम्मि सम्मादिट्ठिचरिमसमए मिच्छत्तं गं तूणुव्व ल्लिय हिदो सरिसो । संपहि एदम्मिदच्च परमाणुत्तरकमेण समयूणावलियमेतगोवुच्छविसेसा मिच्छत्तादो सम्मामिच्छत्तस्सागददव्येणूणओकडणाए विणासिददव्वं च सादिरेयं वङ्गावेदव्वं । एवं वड्डदेण अण्णेगो समयूणपढमलावहिं भमिय मिच्छत्तं गं तूणुव्व ल्लिय हिंदो सरिसो । एवमोदारेदव्वं जाव अंतोमुहुत्तूणपढमछावहिति ।
$ २२४. संपहि एदस्सुवरि परमाणुत्तरकमेण वड्डावेदव्वळ जाव समयूणावलियाए गुणिदअंतोमुहुत्तमेत्तगोवुच्छविसेसा सविसेसा वड्ढिदा ति । एवं वडिदूणच्छिदेण अवरेगो खविदकम्मंसियलक्खणेणागतूण उवसमसम्मत्तं पडिवजिय वेदगसम्मत्तं पविजमाणपढमसमए मिच्छत्तं गं तूणुव्व ल्लिय द्विदो सरिसो । संपहि एदस्सुवरि परमाणुत्तरकमेण समऊणावलियमेत्तगोवुच्छविसेसा एगसमयमुव्वेल्लणसंकमेण गददव्व च बड्डावदव्वं । एवं वड्डिण हिदेण अवरेगो खविदकम्मं सियलक्खणेणागं तूण
और उद्वेलना करके एक समय कम आवलिप्रमाण गोपुच्छाओंके ऊपर एक समयकम आवलिसे गुणित अन्तर्मुहूर्तप्रमाण गोपुच्छाविशेषोंको, उतने ही कालमें अपकर्षणके द्वारा विनाशको प्राप्त हुए द्रव्यको और सम्यक्त्वके जघन्य कालके भीतर विध्यातसंक्रमणके द्वारा मिथ्यात्व में से अपने में प्राप्त होनेवाले द्रव्यसे न्यून संक्रमणके द्वारा पर प्रकृतिको प्राप्त होनेवाले द्रव्यको बढ़ाते जाना चाहिए। इस प्रकार बढ़ाकर स्थित हुए जीवके साथ प्रथम छयासठ सागरके भीतर, सम्यग्दृष्टिके अन्तिम समयमें मिथ्यात्वमें जाकर और उद्वेलना करके स्थित हुआ जीव समान है। अब इस द्रव्य में एक-एक परमाणु अधिकके क्रमसे एक समयकम आवलिप्रमाण गोपुच्छाविशेषों को और मिथ्यात्वके द्रव्यमेंसे संक्रमण द्वारा जो द्रव्य सम्यमिथ्यात्वको मिला है उससे कम अपकर्षणद्वारा विनाशको प्राप्त हुए साधिक द्रव्यको बढ़ाते जाना चाहिये । इस प्रकार बढ़ाकर स्थित हुए जीवके साथ एक समय कम प्रथम छयासठ सागर काल तक भ्रमणकर फिर मिध्यात्व में जाकर उद्वेलना करके स्थित हुआ जीव समान है । इस प्रकार अन्तर्मुहूर्तक्रम प्रथम छयासठ सागर काल समाप्त होने तक उतारना चाहिये । ६ २२४. अब इसके ऊपर एक परमाणु अधिकके क्रमसे एक समय कम आवलिसे गुणित अन्तर्मुहूर्त से कुछ अधिक गोपुच्छाविशेष प्राप्त होनेतक बढ़ाते जाना चाहिये । इस प्रकार बढ़ाकर स्थित हुए जीवके साथ क्षपितकर्मा शकी विधिसे आकर उपशमसम्यक्त्वको प्राप्तकर वेदकसम्यक्त्व को प्राप्त होनेके पहले समय में वेदक सम्यक्त्वको प्राप्त किये बिना freeran जाकर और उद्वेलनाकर स्थित हुआ जीव समान है। अब इसके ऊपर एक-एक परमाणु अधिक के क्रमसे एक समयकम आवलिप्रमाण गोपुच्छाविशेषों को और एक समय में उद्वेलना संक्रमणके द्वारा पर प्रकृतिको प्राप्त हुए द्रव्यको बढ़ाते जाना चाहिये । इस प्रकार बढ़ाकर स्थित हुए जीवके साथ क्षपितकर्मा शकी विधिसे भाकर वेदक सम्यक्त्वको प्राप्त होने के पहले ही समय में उसे प्राप्त किये बिना मिथ्यात्वमें जाकर एक समय कम उत्कृष्ट उद्वेलना
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