Book Title: Kasaypahudam Part 06
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२] उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए सामित्तं
२३१ होदि। समयूणावलियमत्तुकस्सगोवुच्छाणं गुणसंकमभागहारादो चरिमफालिगुणसंकमभागहारो असंखेजगुणो, जहण्णदव्वहेदुत्तादो। जहण्णुव्वल्लणकालण्णोण्णब्भत्थरासीदो चरिमफालीए उव्वल्लणण्णोण्णब्भत्थरासी असंखेजगुणो, उक्कस्सुव्वेल्लणकालम्मि उप्पण्णत्तादो । चरिमफालीदो जोगगुणगारेण समयूणावलियाए ओकडुक्कड्डणभागहारेण च गुणिदव छावहिअण्णोण्णभत्थरासी असंखे गुणो, बहुएहि गुणगारेहि गुणिदत्तादो। तेण चरिमफालिदोण असंखेजगुणहीणेण होदव्वं । तदो ण दोण्हं दव्वाणं सरिसत्तमिदि ? तोक्खहि समयूणावलियमत्तगोवुच्छाणमजहण्णाणुक्कस्सदव्वण चरिमफालिदव्व सरिसं ति घेत्तव्यं ।
२२७. संपहि इम चरिमफालिदव्व परमाणुत्तरादिकमण वड्डाव देव्व जाव एगगोवुच्छदव्वं विज्झादसंकमणागददव्वणूणं वड्डिदं ति । एवं वड्डिदूण विदेण अण्णेगो समयणव छावडीओ भमिय दीहुव्वेल्लणकालेणुव्वोल्लिय चरिमफालिं धरेदूण हिदो सरिसो । एवम गेगगोवुच्छदव्वं विज्झादसंकमणागददव्वेणूणं वड्डाविय दुसमयूणतिसमयणादिकमेण ओदारेदव्वं जाव अंतोमु हुत्तूणं विदियछावहि त्ति । संपहि विदियछावहीए अंतोमुहुत्तस्स चरिमसमए ठविय समऊणादिकमण ओदारिजमाणे
उत्कृष्ट गोपुच्छाओंका प्रमाण होता है।
शंका-एक सयय कम आवलिप्रमाण उत्कृष्ट गोपुच्छाओंके गुणसंकम भागहारसे अन्तिम फालिका गुणसंक्रम भागहार असंख्यातगुणा हैं, क्योंकि यह जघन्य द्रव्यका कारण है। जघन्य उद्वेलना कालकी अन्योन्याभ्यस्त राशिसे अन्तिम फालिकी उद्वेलनाकालकी अन्योन्याभ्यस्तराशि असंख्यातगुणी है, क्योंकि यह उत्कृष्ट उद्घ लना कालमें उत्पन्न हुई है। तथा अन्तिम फालिसे योगगुणकारके द्वारा और एक समय कम आवलिके भीतर प्राप्त अपकर्षण-उत्कर्षण भागहारके द्वारा गुणा की गई दो छयासठ सागरकी अन्योन्याभ्यस्त राशि असंख्यातगुणी है, क्योंकि यह राशि बहुतसे गुणकारोंसे गुणा करके उत्पन्न हुई है, इसलिये अन्तिम फालिका द्रव्य असंख्यातगुणा हीन होना चाहिये, इसलिये दोनों द्रव्य समान हैं यह बात नहीं बनती ?
समाधान–यदि ऐसा है तो एक समय कम आवलिप्रमाण गोपच्छाओंके अजघन्यानुत्कृष्टके साथ अन्तिम फालिका द्रव्य समान है, ऐसा ग्रहण करना चाहिये।
६२२७. अब इस अन्तिम फालिके द्रव्यको एक एक परमाणु अधिकके क्रमसे विध्यात संक्रमणके द्वारा प्राप्त हुए द्रव्यसे न्यून एक गोपुच्छाप्रमाण द्रव्यके बढ़ने तक बढ़ाते जाना चाहिये। इस प्रकार बढ़ाकर स्थित हुए जीवके साथ एक समय कम दो छयासठ सागर काल तक भ्रमणकर फिर उत्कृष्ट उद्वेलना कालके द्वारा उद्वेलना कर अन्तिम फालिको धारण करके स्थित हुआ एक अन्य जीव समान है। इस प्रकार विध्यातसंक्रमणसे आये हुए द्रव्यसे कम एक-एक गोपुच्छके द्रव्यको बढ़ाकर दो समय कम और तीन समय कम आदिके क्रमसे अन्तर्मुहूर्त कम दूसरा छयासठ सागर कालको उतारना चाहिये । अब दूसरे छयासठ सागरके पहले अन्तर्मुहूर्तके अन्तिम समयमें ठहराकर एक समय कम आदिके क्रमसे उतारने
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