Book Title: Kasaypahudam Part 06
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ गच्छमाणदव्वमसंखेजगुणं ति कुदो णव्वदे ? सम्मामिच्छत्तदव्वं पेक्खिदण मिच्छत्तदव्वस्स असंखेजगुणत्तवलंभादो। ण च परिणामभेदेण संकामिजमाणदव्वस्स मेदो, एगसमयम्मि एगजीव णाणापरिणामाणुववत्तीदो । जहा मिच्छत्तादो मिच्छत्तपदेसग्गं सम्मामिच्छत्तं गच्छदि, तहा तत्तो पदेसग्ग तेणेव भागहारेण सम्मत्तं गच्छदि । किंतु तेणेत्थ ण कजमथि सम्मामिच्छत्तस्स पयदत्तादो। एवं वविदण हिदेण अवरेगो दुचरिमसमयसम्मादिट्ठी सरिसो । एदेण विहाणेण वड्डाविय ओदारेयव्व जाव विदियछावट्ठिपढमसमओ त्ति। ___६२३८. संपहि विदियछावट्ठिपढमसमयसम्मादिडिम्मि वड्डाविजमाणे सम्मामिच्छत्तादो विज्झादसंकमण त्थिउकसंकमेण च सम्मत्तं गददव्व मिच्छत्तादो विज्झादसंकमण सम्मामिच्छत्तस्सागददव्वणूणं । पुणो पढमछावहिचरिमसमयम्मि हिदसम्मामिच्छादिहिउदयगदतिण्णिगोवुच्छदबंच वड्ढाव यव्व। एवं वड्डिदूण ट्ठिदेण अण्णेगो चरिमसमयसम्मामिच्छादिट्ठी सरिसो । संपहि चरिमसमयसम्मामिच्छादिहिम्मि वडाविजमाणे तस्सेवप्पणो दुचरिमगोवच्छदव्वं पुणो मिच्छत्त-सम्मत्ताणं दोगोवच्छविसेसा च वड्डावेदव्वा । एवं वड्डिदेण अण्णगो दुचरिमसमयहिदसम्मामिच्छादिट्ठी सरिसो।
सम्यग्मिथ्यात्वको प्राप्त होनेवाला द्रव्य असंख्यातगुणा है यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ?
समाधान—चूंकि सम्यग्मिथ्यात्वके द्रव्यकी अपेक्षा मिथ्यात्वका द्रव्य असंख्यातगुणा है, इससे ज्ञात होता है कि सम्यग्मिथ्यात्वसे सम्यक्त्वको प्राप्त होनेवाले द्रव्यकी अपेक्षा मिथ्यात्वसे सम्यग्मिथ्यात्वको प्राप्त होनेवाला द्रव्य असंख्यातगुणा है।
यदि कहा जाय कि परिणामोंमें भेद होनेसे संक्रमणको प्राप्त होनेवाले द्रव्यमें भेद होता है, सो भी बात नहीं है, क्योंकि एक समयमें एक जीवके नाना परिणाम नहीं पाये जाते हैं। जिस प्रकार मिथ्यात्वमेंसे मिथ्यात्वके प्रदेश सम्यग्मिथ्यात्वको प्राप्त होते हैं उसी प्रकार उसी मिथ्यात्वमेंसे उसके प्रदेश उसी भागहारके द्वारा सम्यक्त्वको प्राप्त होते हैं परन्तु उससे यहां कोई मतलब नहीं है, क्योंकि यहां प्रकरण सम्यग्मिथ्यात्वका है। इस प्रकार बढ़ाकर स्थित हुए जीवके समान एक अन्य जीव है जो उपान्त्य समयवर्ती सम्यग्दृष्टि है। इस विधिसे बढ़ाकर दूसरे छयासठ सागरके प्रथम समयके प्राप्त होने तक उतारते जाना चाहिये।
६२३८. अब दूसरे छयासठ सागरके प्रथम समयवर्ती सम्यग्दृष्टिके द्रव्यके बढ़ाने पर मिथ्यात्वमेंसे विध्यात संक्रमणके द्वारा सम्यग्मिथ्यात्वको प्राप्त होनेवाले द्रव्यसे कम सम्यग्मिथ्यात्वमें विध्यातसंक्रमणके द्वारा और स्तिवुकसंक्रमणके द्वारा सम्यक्त्वको प्राप्त होनेवाले द्रव्यको और प्रथम छयासठ सागरके अन्तिम समयमें स्थित हुए सम्यग्मिथ्यादृष्टिके उदयको प्राप्त हुए तीन गोपुच्छ्राओंके द्रव्यको बढ़ावे । इस प्रकार बढ़ाकर स्थित हुए जीवके समान अन्य एक जीव है जो अन्तिम समयवर्ती सम्यग्मिथ्यादृष्टि है । अब अन्तिम समयवर्ती सम्यग्मिथ्यादृष्टिके द्रव्यके बढ़ाने पर उसीके अपना उपान्त्य समयसम्बन्धी गोपच्छके द्रव्यको तथा मिथ्यात्व और सम्यक्त्वके दो गोपुच्छविशेषोंको बढ़ावे । इस प्रकार बढ़ाकर स्थित हुए
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