Book Title: Kasaypahudam Part 06
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलास हिदे कसायपाहुडे
रासिणा दिवड गुणहाणीए च ओवट्टिदे तदित्थविगिदिगोवुच्छापमाणं होदि ।
९ २०४ एवमुब्वेल्लण कालब्भंतरे गुणहाणीसु गलमाणासु जाघे जहण्णपरित्तासंखेजच्छेद णयमेतगुणहाणीओ मोत्तूण सेससव्वगुणहाणाओ गलिदाओ ताघे अधिययगोबुच्छादो उवरि जहण्णपरित्तासंखेजछेदणयोवद्विदुक्कीरणद्धाए खंडिदचरिमफालीए जत्तियाणि रुवाणि तत्तियमेत्तगुणहाणीओ चिडंति, उक्कीरणद्धोवट्टिदुव्वेल्लणफालियाए खंडिदगुणहाणि मे चुच्वेल्लणकालम्मि जदि एगगुणहाणिमेतद्विदी लब्भदि तो जहण्णपरित्तासंखेजछेदणयगुणिदगुणहाणि मे चुव्वेल्लण कालम्मि किं लभामो ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए उक्कीरणद्धोवदिचरिममुव्वेल्लणफालीए गुणिदजहण्णपरितासंखे अछेदणयमेत्तगुणहाणीण मुवलंभादो ।
$ २०५. संपहि एत्थतणविगिदिगोबुच्छाए पमाणाणुगमं कस्सामो । तं जहादिवगुणहाणिगुणिदसमयपद्धे अंतोमुहुकोवदिओकडकड्डणभागहारेण किंचूणचरिमगुणसंकम भागहारेण वेछावद्विअण्णोष्णग्भत्थरासिणा उवरिमअंतोकोडा कोडिणाणागुणहासिल गाणं रुवृणण्णोष्णव्भत्थरासिणा ओदिण्णद्विदिणाणागुणहाणि सलागाणं रूवूणण्णोण्णव्भत्थरासिणोवट्टिदेण जहण्णपरित्तासंखेज्जेण दिवढगुणहाणीए च भागे हिदे तदित्थविगिदिगोवुच्छा होदि ।
गोपुच्छाका प्रमाण प्राप्त होता है ।
२०४. इस प्रकार उद्व ेलना कालके भीतर गुणहानियोंके उत्तरोत्तर गलने पर जब जघन्य परीतासंख्यातके अर्धच्छेदशलाकाप्रमाण गुणहानियोंके सिवा शेष सब गुणहानियाँ गल ● जाती हैं तब अधिकृत गोपुच्छाके ऊपर जघन्य परितासंख्यातके अर्धच्छेदोंका उत्कीरणकालमें भाग दो जो लब्ध आवे उससे अन्तिम फालिको भाजित करो जो लब्ध रहे उतनी गुणहानियाँ शेष रहती हैं, क्योंकि यदि उत्कीरण कालसे उद्व ेलनफालिको भाजित करके जो लब्ध आवे उससे गुणहानिप्रमाण उद्व ेलना कालके भाजित करने पर यदि एक गुणहानिप्रमाण स्थिति प्राप्त होती है तो जघन्य परीतासंख्यातके अर्धच्छेदोंसे गुणित गुणहानिप्रमाण उद्व ेलन कालके भीतर क्या प्राप्त होगा, इस प्रकार त्रैराशिक करके फलराशिसे इच्छा राशिको गुणित करके जो लब्ध आवे उसमें प्रमाण राशिका भाग देने पर उत्कीरण कालसे अन्तिम उद्वेलना फालिको भाजित करके जो लब्ध आवे उससे जघन्य परीतसंख्यातके अर्धच्छेदोंको गुणित करनेसे जितनी संख्या प्राप्त हो उतनी गुणहानियां पाई जाती हैं ।
[ पदेसविहत्ती ५
§ २०५. अब यहाँकी विकृतिगोपुच्छा के प्रमाणका अनुगम करते हैं । वह इस प्रकार हैडेढ़ गुणहानिसे गुणा किये गये एक समयप्रबद्ध में अन्तर्मुहूर्तसे भाजित अपकर्षण- उत्कर्षणभागहार, कुछ कम अन्तिम गुणसंक्रमभागहार, दो छयासठ सागरकी अन्योन्याभ्यस्त राशि, उपरिम अन्तःकोड़ा कोड़ी सागरकी नाना गुणहानिशलाकाओंकी एक कम अन्योन्याभ्यस्त राशि, जितनी स्थिति गत हो गई है उसकी नाना गुणहानिशलाकाओंकी एक कम अन्योन्याभ्यस्त राशिसे भाजित जघन्य परितासंख्यात और डेढ़ गुणहानि इन सब भारहारों का भाग देने पर वहाँकी विकृतिगोपुच्छा प्राप्त होती है ।
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