Book Title: Kasaypahudam Part 06
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२] उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए सामित्तं
२१३ भागहारेण वेछावहिअण्णोण्णभत्थरासिणा उवरिमअंतोकोडाकोडिणाणागुणहाणिसलागाणमण्णोण्णब्भत्थरासिणा रूवणेण उकीरणद्धोवट्टिदचरिमउव्वेल्लणकंडयरूवमेत्तणाणागुणहाणिसलागाण रूवूणण्णोण्णब्भत्थरासिणोवट्टिदेण रूवणुव्वेल्लणणाणागुणहाणिसलागाणमण्णोण्णब्भत्थरासिणा दिवड्डगुणहाणीए च ओषष्टिदे तत्थतणविगिदिगोवुच्छा आगच्छदि । ___२०२. एवमुवरिमगुणहाणीओ हायमाणीओ जाधे उक्कीरणद्धोवट्टिददुगुणपढमुव्वेल्लणफालिमेत्ताओ गुणहाणीओ परिहीणाओ ताधे उव्वेल्लणकालब्भंतरे दोगुणहाणीओ परिगलंति, एगगुणहाणीए जदि उक्कीरणद्धोवट्टिदचरिमफालीए खंडिदगुणहाणिमेत्तव्वेल्लणकालो लब्भदि तो उक्कोरणद्धाए दुभागेणोवट्टिदचरिमफालिमेत्तगुणहाणीणं किं लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए दोगुणहाणिमेत्तुव्वेल्लणकालुवलंभादो।
२०३. एत्थ विगिदिगोवुच्छापमाणाणुगमं कस्सामो । तं जहा-दिवड्डगुणहाणिगुणिदसमयपबद्धे अंतोमुहुत्तोवट्टिदओकड्डक्कड्डणभागहारेण गुणसंकमभागहारेण वेछावहिअण्णोण्णभत्थरासिणा उवरिमअंतोकोडाकोडिणाणागुणहाणिसलागाणं रूवूणण्णोण्णब्भत्थरासिणा उकीरणद्धादुभागेणोवट्टिदचरिममुव्वेल्लणफालिमेत्तणाणागुणहाणिसलागाणं रूवूणण्णोण्णब्भत्थरासिणोवट्टिदेण दुरूवूणुव्वेल्लणणाणागुणहाणिसलागाणभण्णोण्णब्भत्थअन्तःकोड़ाकोड़ीकी नानागुणहानिशलाकाओंकी एक कम अन्योन्याभ्यस्तराशि, उत्कीरणाकालसे भाजित उद्वलनाकाण्डककी अन्तिम फालिप्रमाण नानागुणहानि शलाकाओंकी एक कम अन्योन्याभ्यस्तराशिसे भाजित उद्घ लनाकी एक कम नाना गुणहानिशलाकाओंकी अन्योन्याभ्यस्तराशि और डेढ़ गुढ़हानि इन सब भागहारोंका भाग देने पर वहांकी विकृतिगोपुच्छा आती है।
६२०२. इस प्रकार उपरिम गुणहानियाँ कम होती हुई जब उत्कीरणकालसे भाजित प्रथम उद्वेलनकी दूनी फालिप्रमाण गुणहानियाँ कम होती हैं तब उद्वेलनकालके भीतर दो गुणहानियाँ गलती हैं, क्योंकि एक गुणहानिमें यदि उत्कीरण कालसे भाजित जो अन्तिम फालि उससे भाजित गुणहानिप्रमाण काल प्राप्त होता है तो उत्कीरणकालके द्वितीय भागसे भाजित अन्तिम फालिप्रमाण गुणहानियों में कितना काल प्राप्त होगा, इस प्रकार त्रैराशिक करके फल राशिसे इच्छा राशिको गुणित करके जो प्राप्त हो उसमें प्रमाणराशिका भाग देने पर दो गुणहानिप्रमाण उद्वलनकाल प्राप्त होता है।
६२०३. अब यहाँ विकृतिगोपुच्छाके प्रमाणका अनुगम करते हैं । वह इस प्रकार हैडेढ़ गुणहानिसे गुणा किये गये एक समयप्रबद्ध में अन्तर्मुहूर्तसे भाजित अपकर्षण-उत्कर्षणभागहार, गुणसंक्रमभागहार, दो छयासठ सागरको अन्योन्याभ्यस्त राशि, उपरिम अन्त:कोड़ाकोड़ीकी नान गुणहानिशलाकाओंकी एक कम अन्योन्याभ्यस्त राशि, उत्कीरण कालके दूसरे भागसे भाजित उद्वेलनाकाण्डककी अन्तिम फालिप्रमाण नाना गुणहानिशलकाओंकी एक कम अन्योन्याभ्यस्त राशिसे भाजित उद लनाकी दो कम नाना गुणहानिशलाकाओंकी अन्योन्याभ्यस्त राशि और डेढ़ गुणहानि इन सब भागहारोंका भाग देने पर वहाँकी विकृति
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