Book Title: Kasaypahudam Part 06
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२] उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए सामित्तं
१६१ उक्कस्सेण संचिददव्वमसंखे०गुणं ति रूवूणगुणागारेण अपुवकरणजहण्णगुणसेडिदव्वे एगहिदिहिदे गुणिदे जेण असंखेजा समयपबद्धा होति तेणुकस्सविसेसो असंखेजसमयपबद्धमेत्तो त्ति परिच्छिज्जदे। किं च विगिदिगोवच्छ पि अस्सिदण असंखेज्जा समयपबद्धा उवलब्भंति । का विगिदिगोवुच्छा णाम ? अंतोकोडाकोडिमेत्तहिदीसु एगेगहिदिम्मि हिदपदेसग्गं पगदिगोवुच्छा। हिदिखंडयघादे कीरमाणे चरिमद्विदिखंडयस्स एगेगहिदीए अपुव्वपदेसलाहो विगिदिगोवुच्छा णाम । तिस्से पमाणं केत्तियं ? अंतोमुहुत्तोवट्टिदओकड्डक्कड्ड णभागहारपदुप्पण्णचरिमफालिगुणिदवेछावडिअण्णोण्णब्भत्थरासिणोवट्टिददिवढगुणहाणिसमयपबद्धमत्तं । एसा जहण्णविगिदिगोबुच्छा। उक्कस्सिया पुण एत्तो असंखेज्जगुणा, खविदकम्मंसियजोगादो गुणिदकम्मंसियजोगस्स असंखे०गुणत्तुवलंभादो। तेणुकस्सविसेसो असंखेज्जसमयपबद्ध मेत्तो त्ति सिद्धं । एदिस्से एगणिसेगहिदीए असंखे०समयपबद्धमेतपदेसहाणाणि णिरंतरमुप्पण्णाणि त्ति पदुप्पायणफला एसा परूवणा।
लिए रूपोन गुणकारके द्वारा एक स्थितिमें स्थित अपूर्वकरणसम्बन्धी गुणश्रेणिके जघन्य द्रव्यको गुणा करने पर यतः असंख्यात समयप्रबद्ध होते हैं अतः उत्कृष्ट विशेष असंख्यातसमयप्रबद्धप्रमाण होता है यह जाना जाता है। दूसरे, विकृतिगोपुच्छाकी अपेक्षा भी असंख्यात समयप्रबद्ध पाये जाते हैं।
शंका-विकृतिगोपुच्छा किसे कहते हैं ?
समाधान-अन्तःकोडाकोडीमात्र स्थितिमें से एक एक स्थितिमें स्थित जो प्रदेश समूह है उसे प्रकृतिगोपुच्छा कहते हैं और स्थितिकाण्डकघातके किये जाने पर अन्तिम स्थितिकाण्डकके द्रव्यका एक एक स्थितिमें जो अपूर्व प्रदेशोंका लाभ होता है उसे विकृतिगोपुच्छा कहते हैं।
शंका–उस विकृतिगोपुच्छाका प्रमाण कितना है ?
समाधान–अन्तर्मुहूर्तसे भाजित जो अपकर्षण-उत्कर्षण भागहार, उससे गुणित जो अन्तिम फाली, उससे गुणित दो छयासठ सागरकी अन्योन्याभ्यस्त राशि उसका भाग डेढ़ गुणहानिगुणित समयप्रबद्धोंमें देनेसे जो लब्ध आवे उतना है । यह जघन्य विकृतिगोपुच्छा है। उत्कृष्ट विकृतिगोपुच्छा इससे असंख्यातगुणी है, क्योंकि क्षपितकर्मा शके योगसे गुणितकर्माशका योग असंख्यातगुणा पाया जाता है, इसलिये उत्कृष्ट विशेष असंख्यात समयप्रवद्धमात्र है यह सिद्ध हुभा। इस एक निषेकस्थितिके असंख्यात समयवद्धप्रमाण प्रदेशस्थान निरन्तर उत्पन्न होते हैं यह कथन करना ही इस प्ररूपणाका फल है।
विशेषार्थ-अब तक यह तो बतलाया कि क्षपितकाशके दो समय कालवाली एक स्थितिके रहते हुए जघन्य सत्कर्मस्थानसे उसीका उत्कृष्ट सत्कर्मस्थान एक समयप्रबद्धप्रमाण अधिक होता है। अब गणित कमी शके उत्कृष्ट गत विशेषताका खुलासा करते हैं। दो समय कालवाली एक स्थितिके रहते हुए क्षपितकर्मा शके जघन्य सत्कर्मस्थानसे गुणितकर्मा शका उत्कृष्ट सत्कर्मस्थान असंख्यात समयप्रबद्धप्रमाण अधिक होता है। तात्पर्य यह है कि क्षपितकोशके दो समय कालवाली एक स्थितिके रहते हुए जो जघन्य सस्कर्मस्थान होता
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