Book Title: Kasaypahudam Part 06
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२] उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए सामित्तं
१६३ होदि । एदासु चदुसु गोपुच्छासु अणियट्टिगुणसेडिगोपुच्छा पहाणा, सेसतिण्हं गोपुच्छाणमेदिस्से असंखे०भागत्तादो एदेसिं तिण्डं गोपुच्छाणं जो उक्कस्सविसेसोसो वि एदासिं पदेसेहिंतो पदेसग्गेण ण असंखेलगुणो किं तु तस्स विसेसस्स पदेसग्गमणियट्टिगुणसेडिगोपुच्छपदेसग्गादो असंखेजगुणहीणं । एदं कुदो णव्वदे ? 'तस्स पुण जहण्णयस्स संतकम्मस्स असंखेजदिभगो' त्ति सुत्तणिद्देसण्णहाशुववत्तीदो। किंफला एसा परूवणा। जहण्णढाणस्स असंखे०भागमेत्ताणि चेव एत्थ पदेससंतकम्मट्ठाणाणि लब्भंति ति पदुप्पायणफला।।
* एदेण कारणेण एग फड्डयं । ६ १५९. जेण उक्कस्सविसेसपदेसग्गमणियट्टिगुणसेडिपदेसग्गस्स असंखे०भागो तेण पदेसुत्तरकमेण णिरंतरवड्डी ण विरुज्झदि त्ति एयं फद्दयं । जदि पुण विसेसो अनिवृत्तिकरणसम्बन्धी गुणश्रेणिकी गोपुच्छा प्रधान है, क्योंकि शेष तीन गोपुच्छाएँ इसके असंख्यातवें भागमात्र हैं। इन तीन गोपुच्छाओंका जो उत्कृष्ट विशेष है वह भी इनके प्रदेशोंसे प्रदेशांकी अपेक्षा असंख्यातगुणा नहीं है, किन्तु उस विशेषका जो प्रदेशसमूह है वह अनिवृत्तिकरण सम्बन्धी गुणश्रोणिकी गोपुच्छाके प्रदेशसमूहसे असंख्यातगुणा हीन है।
शंका-यह किस प्रमाणसे जाना ?
समाधान-यदि ऐसा नहीं होता तो 'उस जघन्य सत्कर्मके असंख्यावें भाग प्रमाण है' ऐसा सूत्रका कथन नहीं होता ।
शंका-इस कथनका क्या प्रयोजन है ?
समाधान-जघन्य प्रदेशस्थानके असंख्यातवें भागमात्र ही यहां प्रदेशसत्कर्मस्थान पाये जाते हैं यह ज्ञान कराना ही इस कथनका प्रयोजन है।
विशेषार्थ-पहले उत्कृष्ट विशेष असंख्यात समयप्रबद्धप्रमाण सिद्ध कर आए हैं। इतने कथनमात्रसे यह ज्ञात नहीं होता कि यह उत्कृष्ट विशेष जघन्य सत्कर्मके प्रमाणसे कितना अधिक है, अतः इस बातका ज्ञान करानेके लिए यहां चूर्णिसूत्रके आधारसे यह सिद्ध करके बतलाया गया है कि यह उत्कृष्ट विशेष जघन्य सत्कर्मके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इसकी सिद्धिमें वीरसेन स्वामीने जो युक्ति दी है उसका भाव यह है कि जघन्य द्रव्यमें चार गोपुच्छाएं होती हैं। उनमें अनिवृत्तिकरणको गुणश्रेणि गोपुच्छा मुख्य है, क्योंकि शेष तीन गोपुच्छाएं उसके असंख्यातवें भागप्रमाण होती हैं । तात्पर्य यह है कि जिस अनिवृत्तिकरणकी गोपुच्छाके कारण बहुत अन्तर पड़ सकता है वह तो जघन्य प्रदेशसत्कर्म और उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म दोनों जगह समान है। विषमता केवल तीन गोपुच्छाओंके कारण सम्भव है पर वे तीनों मिलकर भी अनिवृत्तिकरण गुणश्रेणीगोपुच्छासे असंख्यातगुणी हीन हैं। अतः उत्कृष्ट विशेष जघन्य सत्कमके असख्यातवें भागप्रमाण है यह सिद्ध होता है ।
ॐ इस कारणसे एक ही स्पर्धक होता है।
६ १५९ यतः उत्कृष्ट विशेषका प्रदेशसमूह अनिवृत्तिकरणसम्बन्धी गुणश्रोणिके प्रदेशसमूहके असंख्यातवें भागप्रमाण है अतः प्रदेशोत्तर क्रमसे निरन्तर वृद्धिके हानेमें कोई विरोध नहीं आता, इसलिये एक स्पर्धक होता है। किन्तु यदि वह विशेष अनिवृत्तिकरणसम्बन्धी
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