Book Title: Kasaypahudam Part 06
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ इत्थि-णqसयवेदोदएण खवगसेढिचढावणं जुत्तं, मिच्छत्तं गदस्स इत्थि-णqसयवेदाणं विज्झादेण विणा अधापवत्तभागहारेण संकमप्पसंगादो । तत्थ वयाणुसारी आओ अत्थि त्ति णेदं दोसाए त्ति चे तो क्ख हि एवं घेत्तव्वं-ण मिच्छत्तं णिजदि, मिच्छत्तगुणेण णिकाचिजमाणपदेसग्गेहिंतो सम्मत्तगुणेण णिकाचिजमाणपदेसग्गाणमसंखेजगुणत्तादो। एदं कुदो णव्वदे ? एदम्हादो चेव सुत्तादो। तम्हा पुरिसवेदोदएण चेव खवगसेटिं चढावेदव्यो।
___११८. एत्थ संचयाणुगमो वुच्चदे । तं जहा-चरिमसमयदेवपुरिसवेददव्वस्स असंखे०भागो चेव गट्ठो, सामित्तसमयपुरिसवेदउदयगदगुणसेढिगोवुच्छाए असंखे०भागस्सेव हेट्ठा णत्तादो । सव्वसंकमभागहारेण संकामिदइत्थि-णQसयवेददव्वाणमसंखे०भागस्सेव कसायसरूवेण गुणसंकमभागहारेण संकंतत्तादो। तेण किंचूणदिवड्डगुणहाणिमेत्ता पंचिंदियसमयपबद्धा उक्स्सेण पुरिसवेदे होति त्ति घेत्तव्यं ।
ॐ तेणेव जाधे पुरिसवेद-छएणोकसायाणं पदेसग्गं कोधसंजलणे थोड़े होने में विरोध आता है। दूसरे, ऐसे जीवको स्त्रीवेद और नपुसकवेदके उदयसे क्षपक श्रेणिपर चढ़ाना युक्त नहीं है, क्योंकि इसे स्त्रीवेद और नपुसकवेदी मनुष्य होनेके लिये मिथ्यात्वमें जाना पड़ेगा और तब इसके स्त्रीवेद और नपुसकवेदका विध्यातसंक्रमणके बिना अधःप्रवृत्तभागहारसे ही संक्रमणका प्रसंग प्राप्त होगा।
शंका-मिथ्यात्वमें व्ययके अनुसार ही आय होती है, अतः इससे कोई दोष नहीं है ?
समाधान—तो फिर ऐसा लेना चाहिये कि ऐसा जीव मिथ्यात्वको प्राप्त नहीं होता, क्योंकि मिथ्यात्वगुणके द्वारा निकाचितपनेको प्राप्त होनेवाले प्रदेशोंसे सम्यक्त्वगुणके द्वारा निकाचितपनेको प्राप्त होनेवाले प्रदेश असंख्यातगुणे होते हैं ।
शंका—यह किस प्रमाणसे जाना ? समाधान-इसी सूत्रसे जाना। अतः पुरुषवेदके उदयसे ही क्षपकश्रोणिपर चढ़ाना चाहिए।
६ ११८. अब संचयानुगम कहते हैं। वह इस प्रकार है-चरिम समयवर्ती देव पुरुषवेदका जो द्रव्य है, वहाँसे लेकर पुरुषवेदका उत्कृष्ट स्वामित्व प्राप्त होने तक उसका असंख्यातवाँ भार
वाँ भाग ही नष्ट हुआ है, क्योंकि पुरुषवेदके उत्कृष्ट स्वामित्वके समय में पुरुषवेदकी जो गुणश्रेणि गोपुच्छा उदयमें आती है उसका असंख्यातवाँ भाग ही नीचे अर्थात देव पर्यायके अन्तिम समयसे लेकर उत्कृष्ट स्वामित्व कालके उपान्त्य समय तक नष्ट हुआ है। तथा सर्वसंक्रम भागहारके द्वारा स्त्रीवेद और नपुसकवेदका जो द्रव्य पुरुषवेदरूपसे संक्रान्त हुआ है उसका असंख्यातवाँ भाग ही गुणसंक्रम भागहारके द्वारा कषायरूपसे संक्रान्त हुआ है, अतः कुछ कम डेढ़ गुणहानिमात्र पञ्चन्द्रियके समयप्रबद्ध प्रमाण उत्कृष्ट द्रव्य पुरुषवेदका होता है ऐसा मानना चाहिये।
* वही जीव जब पुरुषवेद और छ नोकषायोंके द्रव्यको क्रोधसंज्वलनमें प्रक्षिप्त
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