Book Title: Kasaypahudam Part 06
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पदेसविहत्ती ५ पढमसमयउववण्णस्स उक्कस्सयं पदेससंतकम्मं । सम्मामि० उक्क० पदेसवि० कस्स ? जो गुणदिकम्मंसिओ सत्तमादो पुढवीदो ओवट्टिदृण संखेजाणि तिरियभवग्गहणाणि अणुपालेदूण सव्वलहुं सम्मत्तं पडिवण्णो सव्वुक्कस्सेण पूरणकालेण सम्मामिच्छत्तं पूरेदूण उवसमसम्मत्तचरिमसमए वट्टमाणस्स उक्क० पदेसविहत्ती । सम्मत्तस्स रइयभंगो। इथिवेदस्त ओधभंगो । पुरिस०-णवंस० उक्क० पदेसवि० कस्स ? जो पूरिदकम्मंसिओ तिरिक्खेसु उववण्णो तस्स पढमसमयउववण्णस्स उक्क० पदेसविहत्ती । एवं पंचिंदियतिरिक्ख-पंचिंतिरिक्खपजत्ताणं । जोणिणीणमेवं चेव । णवरि सम्मत्त० सम्मामिच्छत्तभंगो। पंचिंदियतिरिक्खअपज० मिच्छत्त०-सोलसक०-छण्णोक० उक्क० पदेसवि० कस्स ? जो गुणिदकम्मंसिओ सत्तमादो पुढवीदो उव्यट्टिदूण संखेजतिरियभवग्गहणाणि जीविदण पुणो पंचिंतिरिक्खअपजत्तएसु उववण्णो तस्स पढयसमयउववण्णस्स उक्कस्सयं पदेससंतकम्मं । सम्मत्त-सम्मामिच्छत्तीणमेवं चेव संखेजतिरिक्खभवग्गहणाणि गमेदूण सव्वलहुँ सम्मत्तं पडिवजिय पुगो मिच्छत्तं गंतूण अविणद्वगुणसेढीहि पंचिंदियतिरिक्खअपजत्तएसु उववण्णो तस्स पढमसमयउववण्णस्स उक्क० पदेसवि० । तिण्हं वेदाणमुक्क० कस्स ? जो पूरिदकम्मंसिओ सव्वलहुं पंचिं०तिरिक्खअपजत्तएसु
उत्पन्न हुआ उसके उत्पन्न होनेके प्रथम समयमें उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म होता है। सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति किसके होती है ? जो गुणितकर्मा शवाला जीव सातवें नरकसे निकलकर तिर्यश्चके संख्यात भव धारण करके जल्दीसे जल्दी सम्यक्त्वको प्राप्त करे और सबसे उत्कृष्ट पूरण कालके द्वारा सम्यग्मिथ्यात्वको प्रदेशोंसे पूर दे। उपशम सम्यक्त्वके अन्तिम समयमें वर्तमान उस जीवके उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति होती है। सम्यक्त्व प्रकृतिका उत्कृष्ट स्वामित्व नारकियोंके समान जानना चाहिए। स्त्रीवेदका उत्कृष्ट स्वामित्व ओघकी तरह है। पुरुषवेद और नपुंसकवेदको उत्कृष्ट प्रदेश विभक्ति किसके होती है ? जो गुणित कर्मा शवाला जीव दोनों वेदोंको प्रदेशोंसे पूरकर तिर्यञ्चोंमें उत्पन्न हुआ उसके उत्पन्न होनेके प्रथम समयमें उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति होती है। इसीप्रकार पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च और पश्चेन्द्रिय तियश्च पर्याप्तकोंमें जानना चाहिए । योनिनी तिर्यञ्चोंमें भी इसी प्रकार जानना चाहिए । विशेष इतना है कि सम्यक्त्व प्रकृतिका उत्कृष्ट स्वामित्व सम्यग्मिथ्यात्वके समान होता है। पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्तोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और छह नोकषायकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति किसके होती है ? जो गुणितकर्मा शवाला जीव सातवें नरकसे निकलकर तियञ्चोंके संख्यात भव धारण करके फिर पञ्चन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्तोंमें उत्पन्न हुआ उसके उत्पन्न होनेके प्रथम समयमें उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म होता है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म भी इसी प्रकार जानना चाहिये । अर्थात् गुणितकर्मा शवाला जीव तिर्यञ्चके संख्यात भव बिताकर सबसे लघु कालके द्वारा सम्यक्त्वको प्राप्त करके फिर मिथ्यात्व में जाकर नाशको नहीं प्राप्त हुई गुणश्रेणियों के साथ पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्तोंमें उत्पन्न हुआ उसके उत्पन्न होनेके प्रथम समयमें उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति होती है। तीनों वेदोंकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति किसके होती है ? जो तीनों वेदोंका उत्कृष्ट संचय करके जल्दासे जल्दी पञ्चेन्द्रिय तियञ्च अपर्याप्तकोंमें उत्पन्न हुआ
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