Book Title: Kasaypahudam Part 06
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पदेसविहत्ती ५ पक्खित्तं ताधे तस्स उकस्सयं पदेससंतकम्मं । माणसंजलणस्स उक्क० पदेस० कस्स ? अण्णद० जाधे कोधसंज० उक्क० पदेससंतकम्म माणे पक्खित्तं ताधे माणस्स उक्क० पदेससंतकम्मं । मायासंजलणस्स उक्क० पदेसवि० कस्स ? अण्णद० जाधे माणस्स उक्क० पदेससंतकामं मायाए पक्खित्तं ताधे तस्स उक्क० पदेसविहत्ती । लोभसंजल. उक्क० पदेस० कस्स ? अण्णद० जाधे उकस्समायासंजल पदेसग्गं लोभे पक्खित्तं ताधे तस्स उकस्सयं पदेससंतकम्म ।
६१२४. आदेसेण णिरयगईए णेरइएसु मिच्छत्त-सोलसक०-छण्णोक० उक्क० पदेसवि० कस्स ? जो गुणिदकम्मंसियलक्खणेणागंतूण सत्तमाए पुढवीए तेत्तीससागरोवमाउद्विदीओ होदण उववण्णो तस्स चरिमसमयणेरइयस्स अंतोमुहुत्तचरिमसमयणेरइयस्स वा उक्क० पदेसविहत्ती। सम्भामि० उक्क० पदेसवि० कस्स ? सत्तमपुढविणेरइयस्स अंतोमुहुत्तेण मिच्छत्तपदेससंतकम्ममुक्कस्सं होहिदि त्ति विवरीदं गंतूण सम्मत्तं पडिवज्जिय उक्कस्सगुणसंकमकालेण आवरिय तिण्हं कम्माणमेगदरस्स उदओ होहिदि त्ति अहोदूण द्विदउवसमसम्मादिहिस्स उक्कस्सिया पदेसविहत्ती । सम्मत्तस्त उक०पदेसवि० कस्स ? जो गुणिदकम्मंसिओ सत्तमादो पुढवीदो उव्यट्टिदसमाणो संखेन्जाणि तिरियभवग्गहणाणि भमिग मगुस्सो जादो सव्वलहुएण कालेण दंसणमोहक्खवणमाढविय कदकरणिजो होदूण सम्मत्तहिदीए अंतोमुहुत्तावउत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्मको क्रोध संज्वलनमें प्रक्षिप्त कर देता है तब क्रोधका उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म होता है। मानसंज्वलनका उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म किसके होता है ? जब क्रोध संज्वलनका उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म मानमें प्रक्षिप्त कर देता है तब मानका उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म होता है। माया संज्वलनकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति किसके होती है ? जब मानका उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म मायामें प्रक्षिप्त कर देता है तब मायाकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति होती है। लोभ संज्वलनका उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म किसके होता है ? जब उत्कृष्ट माया संज्वलनके प्रदेशसमूहको लोभमें प्रक्षिप्त कर देता है तब लोभका उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म होता है।
६ १२४. आदेशसे नरकगतिमें नारकियोंमें मिथ्यात्व, सोलह कषाय और छह नोकषायोंकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति किसके होती है ? जो गुणितकर्मा शके लक्षणके साथ आकर सातवें नरकमें तेतीस सागरकी आयु लेकर उत्पन्न हुआ उस अन्तिम समयवर्ती नारकीके अथवा चरिम समयसे अन्तमुहत नीचे उतरकर स्थित नारकोके उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति होती है। सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति किसके होती है? सातवें नरकके जिस नारकीके अन्तर्महर्तके बाद मिथ्यात्वका उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म होगा वह विपरीत जाकर सम्यक्त्वको प्राप्तकर गुणसंक्रमके उत्कृष्ट कालके द्वारा सम्यग्मिथ्यात्वका संचयकर दर्शनमोहकी तीनों प्रकृतियोंमेंसे एकका उदय होगा किन्तु ऐसा न होकर स्थित हुए उपशमसम्यग्दृष्टिके उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति होती है। सम्यक्त्वकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति किसके होती है ? जो गुणितकर्मा श वाला जीव सातवीं पृथिवीसे निकल कर तिर्यञ्चके संख्यात भवोंमें भ्रमण करके मनुष्य हुआ।
और सबसे लघु कालके द्वारा दर्शनमोहके क्षपणका आरम्भ करके कृतकृत्यवेदक सम्यग्दृष्टि होकर सम्यक्त्व प्रकृतिकी अन्तर्मुहूर्त प्रमाण स्थिति शेष रहने पर नरकायुके बंधके वशसे
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