Book Title: Kasaypahudam Part 06
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ समयदेवस्स उक्क० पदेसवि० । णवूस० ओधं । एवं भवण-वाण॰जोदिसियाणं । णवरि सम्मत्तस्स सम्मामिच्छत्तभंगो। तिण्हं वेदाणमुक्क० पदेसवि० कस्स ? जो गुणिदकमेण पूरिदकम्मंसिओ अप्पप्पणो देवेसु उववण्णो तस्स पढमसमयदेवस्स उक्क० पदेसवि० । सोहम्मीसाणेसु देवोघं । सणक्कुमारादि जाव सहस्सारे त्ति देवोघं । णवरि तिण्हं वेदाणं भवणवासियभंगो।
१२९. आणदादि जाव णवगेवजा त्ति मिच्छत्त-सोलसक०छण्णोक० उक्क० पदेसवि० कस्स ? जो गुणिदकम्मंसिओ सत्तमादो पुढवीदो उव्वट्टिदसमाणो संखेजाणि तिरियभवग्गहणाणि अणुपालेदूण पुणो वासपुधत्ताउओ होदूण मणुस्सेसु उववण्णो सव्वलहुएण कालेण दवलिंगमुवणमिय अंतोमुहुत्तमच्छिय कालगदसमाणो अप्पप्पणो देवेसु उववण्णो। तस्स पढमसमयउववण्णस्स उक० पदेसविहत्ती । सम्मामि० उक्क० पदेसवि० कस्स ? एसो जीवो चेव अंतोमुहुत्तेण जो सम्मत्तं पडिवण्णो सव्वुकस्सेण पूरणकालेणावूरिदसम्मामिच्छत्तो तिण्हमेक्कदरस्स उदए अवरिदचरिमसमए द्विदस्स तस्स सम्मामि० उक्क० पदेसवि० । सम्मत्तस्स सणक्कुमारभंगो। एवं तिण्हं वेदाणं । णवरि दवलिंगि ति भाणिदव्वं । अणुद्दिसादि जाव सव्वह सिद्धि त्ति मिच्छ०-सम्मामि०-सोलसक०-छण्णोक० उक० पदेस० कस्स ? वाले देवके अन्तिम समयमें उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति होती है। नपुंसकवेदकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति ओघकी तरह है। इसी प्रकार भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी देवोंमें जानना चाहिये। इतना विशेष है कि सम्यक्त्व प्रकृतिकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति सम्यग्मिथ्यात्वकी तरह जानना चाहिये। तीनों वेदोंकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति किसके होती है ? जो गुणितकर्मा शके क्रमानुसार तीनों वेदोंका उत्कृष्ट संचय करके अपने अपने देवोंमें उत्पन्न हुआ उसके प्रथम समयमें उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति होती है। सौधर्म और ईशान स्वर्गके देवोंमें सामान्य देवोंकी तरह जानना चाहिये । सनत्कुमारसे लेकर सहस्रार स्वर्ग पर्यन्त भी सामान्य देवोंकी तरह जानना चाहिये । इतना विशेष है कि तीनों वेदोंका भङ्ग भवनवासियोंकी तरह होता है।
६१२९. आनतसे लेकर नव ग्रैवेयकपर्यन्त मिथ्यात्व, सोलह कषाय और छह नोकषायकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति किसके होती है ? जो गुणितकर्मा शवाला जीव सातवें नरकसे निकलकर तिर्यश्चके संख्यात भव धारण करके फिर वर्ष पृथक्त्वकी आयु लेकर मनुष्योंमें उत्पन्न हुआ। सबसे जघन्य कालके द्वारा द्रव्यलिंगको धारण करके अन्तर्मुहूर्त तक ठहरकर फिर मरण करके अपने अपने देवोंमें उत्पन्न हुआ उसके उत्पन्न होनेके प्रथम समयमें उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति होती है। सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति किसके होती है ? इन्हीं जीवोंमेंसे जो अन्तर्मुहुर्तमें सम्यक्त्वको प्राप्त करके सबसे उत्कृष्ट पूरणकालके द्वारा सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृतिको प्रदेशोंसे पूर देता है, तीनों प्रकृतियोंमेंसे किसी एकके उदयमें आनेके पूर्व अवशिष्ट अन्तिम समयमें स्थित उस जीवके सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति होती है। सम्यक्त्व प्रकृतिका भंग सानत्कुमार स्वर्गकी तरह होता है। इसी प्रकार तीनों वेदोंका जानना चाहिए। किन्तु द्रव्यलिंगीके कहना चाहिए । अर्थात् उक्त प्रकारसे जो द्रव्यलिंगी मरकर आनतादिकमें उत्पन्न हुआ उसके उक्त विधिके द्वारा वेदोंकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति होती है। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि पर्यन्त मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व, सोलह
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