Book Title: Kasaypahudam Part 06
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ ताव पलिदोवमहिदि ति आगमरूढीदो। एसा एगा परिवाडी देसामासियभावेण सुत्ते ण' परूविदा तेण संखेजवारमेदेणेव कमेण तसद्रिदीए अभंतरे तिण्हं वेदाणमावूरणं कादव्वं । तदो अपच्छिमे भवग्गहणे खवगसेढिं किमटुं चडाविदो ? इत्थिणqसयवेदपदेसग्गस्स पुरिसवेदसरूवेण परिणमावण । पुरिसवेदपदेसग्गादो इत्थिणव॒सयवेदपदेसग्गमसंखे०भागो, गलिदासंखेजगुणहाणित्तादो। गुणसेढिणिजरादो खवगसेढीए गलिददव्वं पि पुरिसवेददव्वस्स असंखे०भागो किं तु इत्थि-णवुसयवेददव्वादो असंखे०गुणं, ओकड्डकड्डणभागहारादो पलिदोवमभंतरणाणागुणहाणिसलागाणमसंखेजगुणत्तुवलंभादो। ण चेदमसिद्धं, सव्वत्थोवो गुणसंकमभागहारो। ओकड्डुकड्डणभागहारो असंखे गुणो । अधापवत्तसंकमभागहारो असंखेजगुणो । जोगगुणगारो असंखे गुणो। णाणागुणहाणिसलागाओ असंखेगुणाओ। पलिदोवमद्धच्छेदणाओ विसेसाहिओ त्ति अप्पाबहुअबलेण तस्सिद्धीए । तेण खवगसेढीए आयादो वओ बहुओ त्ति पलिदोवमाउडिदिदेवचरिमसमए उक्स्ससामित्तं दादव्वं । एत्थ परिहारो वुच्चदेखवगसेढीए गुणसेढिकमेण गलिददव्वादो इत्थि-णवु सयवेददव्वमसंखेजगुणं, ओकड्डकहनेकी आगममें रूढ़ि है।
यह एक क्रम है। इसी प्रकार अनेक बार यही क्रम जानना चाहिये, परन्तु अनेक बार उत्पन्न होनेका वह क्रम देशामर्षक होनेसे सूत्रमें नहीं कहा, अतः त्रसस्थितिके अन्दर संख्यात बार तीनों वेदोंकी पूर्ति कराना चाहिये । अर्थात् संख्यात बार ईशानस्वर्गमें गया, संख्यात बार असंख्यात वर्षकी आयुवालोंमें उत्पन्न हुआ और संख्यात बार सौधर्मकल्पमें उत्पन्न हुआ।
शंका-फिर अन्तके भवमें क्षपकश्रेणिपर क्यों चढ़ाया है ?
समाधान-स्त्रीवेद और नपुंसकवेदके प्रदेशसमूहको पुरुषवेदरूपसे परिणमानेके लिये अन्तके भक्में क्षपकश्रेणी पर चढ़ाया है।
शंका-स्त्रीवेद और नपुंसकवेदका प्रदेशसमूह पुरुषवेदके प्रदेशसमूहसे असंख्यातवें भाग बचता है, क्योंकि पुरुषवेदका उत्कृष्ट प्रदेशसंचय प्राप्त होने तक उनकी असंख्यात गुणहानियाँ गल चुकी हैं। तथा गुणश्रेणिनिर्जराके द्वारा क्षपकश्रेणिमें गलित द्रव्य भी पुरुषवेदके द्रव्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है, किन्तु वही स्त्रीवेद और नपुसकवेदके द्रव्यसे असंख्यातगुणा है, क्योंकि उत्कर्षण-अपकर्षण भागहारसे पल्योपमके अन्दर की नानागुणहानिशलाकाएं असंख्यातगुणी पाई जाती हैं और यह बात असिद्ध नहीं है, क्योंकि गुणसंक्रम भागहार सबसे थोड़ा है। उत्कर्षण-अपकर्षण भागहार उससे असंख्यातगुणा है। अधःप्रवृत्तसंक्रम भागहार उससे असंख्यातगुणा है। योगोंका गुणकार उससे असंख्यातगुणा है। नानागुणहानिशलाकाएँ उससे असंख्यातगुणी हैं और पल्योपमके अर्द्धछेद उससे विशेष अधिक है । इस अल्पबहुत्वके बलसे उसकी सिद्धि होती है। अतः क्षपकश्रेणिमें आयसे व्यय बहुत है, इसलिये पल्यकी आयुवाले देवके अन्तिम समयमें पुरुषवेदका उत्कृष्ट स्वामित्व देना चाहिये ?
समाधान-अब इस शंकाका समाधान करते हैं-क्षपकश्रेणिमें गुणश्रेणिके क्रमसे निर्जराको प्राप्त होनेवाले द्रव्यसे स्त्रीवेद और नपुंसकवेदका द्रव्य असंख्यातगुणा है, क्योंकि
१. तापतौ 'सुत्तेण' इति पाठः । २. आप्रतौ 'ण चेवमसिद्धं' इति पाठः ।
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