Book Title: Kasaypahudam Part 06
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२] उत्तरपयडिपदेसविहत्तीएं सामित्तं
१०३ संखे०भागेणूणदिवडगुणहाणिमेत्तपंचिंदियसमयपबद्ध मेत्तं । किमढे दिवद्वगुणहाणीए संखे०भागो अवणिजदे ? पुरिसवेददव्वावणयणटुं। तद्दव्वभागो दिवड्डगुणहाणीए संखे०भागो ति कुदो णव्वदे ? पुरिसवेदबंधगद्धादो इत्थिवेदबंधगद्धाए संखे० गुणत्तादो। ___१११. एत्थ ताव दोण्हं वेददव्वाणं वंटणविहाणं वुच्चदे । तंजहा–दोवेददव्वाणं जदि दिवड्गुणहाणिमेत्ता पंचिंदियसमयपबद्धा लभंति तो पुध पुध इत्थि-पुरिसवेदबंधगद्धाणं किं लाभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए इत्थिवेदस्स दिवडगुणहाणीए संखेजभागमेत्ता पुरिसवेदस्स दिवड्डगुणहाणीए संखे भागमेत्ता समयपबद्धा लब्भंति ।
___११२. एत्थ इत्थिवेदुक्कस्सदव्वसामिचरिमसमए अप्पाबहुअं उच्चदे। तं जहा-सव्वत्थोवं णqसयवेददव्वं, दिवड्वगुणहाणीए असंखे०भागमेत्तपंचिंदियसमयपबद्धपमाणत्तादो । पुरिसवेददव्वमसंखे०गुणं, दिवड्डगुणहाणीए संखे०भागमेत्तपंचिंदियसमयपबद्ध पमाणत्तादो । इत्थिवेददव्वं संखे०गुणं, किंचूणदिवडगुणहाणिमेत्तपंचिंदियसमयपबद्धपमाणत्तादो।
६ ११३. इत्थिवेदुक्कस्सदव्वपमाणपसाहणट्ठमसंखेजवस्साउएसु अद्धाणप्पाबहुअं भाग कम डेढ़ गुणहानिमात्र पञ्चेन्द्रिय जीवके समयप्रबद्धप्रमाण होता है।
शंका-डेढ़गुणहानिमें संख्याता भाग क्यों कम किया है ? समाधान-पुरुषवेदसम्बन्धी द्रव्यको उसमेंसे घटानेके लिये कम किया है।
शंका-पुरुषवेदसम्बन्धी द्रव्यका भाग डेढ़ गुणहानिके संख्यातवें भागप्रमाण है यह कैसे जाना ?
समाधान-क्योंकि पुरुषवेदके बन्धककालसे स्त्रीवेदका बन्धककाल संख्यातगुणा है।
६१११. अब यहां दोनों वेदोंके द्रव्यके बटवारेका विधान कहते हैं जो इस प्रकार है-यदि दोनों वेदसम्बन्धी द्रव्यके डेढ़गुणहानि प्रमाण पञ्चेन्द्रियसम्बन्धी समयप्रबद्ध होते हैं तो पृथक् पृथक् स्त्रीवेद और पुरुषवेदके बन्धककालमें कितने कितने समयप्रबद्ध प्राप्त होते हैं। इस प्रकार त्रैराशिक करके फलराशिसे इच्छाराशिको गुणित करके प्रमाणराशिसे उसमें भाग देने पर स्त्रीवेदके डेढ़गुणहानिके संख्यात बहुभागप्रमाण और पुरुषवेदके डेढ़गुणहानिके संख्यातवें भागप्रमाण समयप्रबद्ध प्राप्त होते हैं।
६११२. अब यहां स्त्रीवेदके उत्कृष्ट द्रव्यके स्वामीके अन्तिम समयसम्बन्धी अल्पबहुत्वको कहते हैं। जो इस प्रकार है-नपुसकवेदका द्रव्य सबसे थोड़ा है, क्योंकि वह डेदगुणहानिके असंख्यातवें भागमात्र पञ्चेन्द्रियसम्बन्धी समयप्रबद्धप्रमाण है। उससे पुरुषवेदका द्रव्य असंख्यातगुणा है, क्योंकि वह डेढ़गुणहानिके संख्यातवें भागमात्र पञ्चेन्द्रियसम्बन्धी समयप्रबद्धप्रमाण है। उससे स्त्रीवेदका द्रव्य संख्यातगुणा है, क्योंकि वह कुछ कम डेदगुणहानिमात्र पश्चेन्द्रियसम्बन्धी समयप्रबद्धप्रमाण है।
६ ११३. अब स्त्रीवेदके उत्कृष्ट द्रव्यका प्रमाण सिद्ध करनेके लिये भसंख्यातवर्षकी थायुवालोंमें कालका अल्पबहुत्व बतलाते हैं। यथा-हास्य और रतिका बन्धककाल सबसे
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