Book Title: Kasaypahudam Part 06
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पदेसविहत्ती ५ माउ पाएण संखेजगुणमिदि वा बादरपुढविजीवेसु अपञ्जत्तजोगपरिहरणटुं हिंडाविदो। पढविकाइयजोगादो असंखे०गुणेण जोगेण तप्पज्जत्तद्धादो संखेजासंखेजगुणाए पज्जतद्धाए कम्मपदेससंचयटुं संकिलेसेण तदुक्कड्डिजमाणदव्वादो असंखेजगुणदव्वुक्कड्डणडं च वेसागरोवमसहस्साणि सादिरेयाणि तसकाइएसु हिंडाविदो । जदि एवं तो तसकाइएसु चेव कम्महिदिमेत्तं कालं किण्णभमाविदो ? ण, तसद्विदीए कम्महिदिमेत्ताए अभावादो। बहुवारं तसहिदि किण्ण भमाविदो ? ण, तसहिदिं समाणिय एइंदियत्तं गदस्स पुणो कम्महिदिकालभंतरे तसहिदिसमाणणं पडि संभवाभावेण पुणो एइंदिएसु पविहस्स कम्मडिदिअभंतरे णिग्गमाभावेण च बहुदव्वसंचयाभावप्पसंगादो। तेत्तीसं सागरोवमाउटिदिएसु णेरइएसु णिरंतरं जदि उप्पजदि तो दो चेव भवग्गहणाणि उप्पजदि त्ति जाणावणटुं 'अपच्छिमाणि तेत्तीसं सागरोवमाणि दोभवग्गहणाणि' त्ति
दूसरे, शेष एकेन्द्रिय जीवोंकी आयुसे बादर पृथिवीकायिक जीवोंकी आयु प्रायः संख्यातगुणी होती है, इसलिये भी अपर्याप्त योगका परिहार करनेके लिये बादर पृथिवीकायिक जीवोंमें भ्रमण कराया है। प्रथिवीकायिक जीवोंके योगसे त्रसकायिक असंख्यातगुणा होता है तथा उनके पर्याप्त कालसे त्रसजीवोंका पर्याप्त काल संख्यातगुणा और असंख्यातगुणा होता है। इसके सिवा बादर पृथिवीकायिक जीवोंके संक्लेश परिणामसे जितने द्रव्यका उत्कर्षण होता है, उससे असंख्यातगुणे द्रव्यका उत्कर्षण त्रसकायिक जीवोंमें होता है, अतः असंख्यातगुणे योगके द्वारा संख्यातगणे और असंख्यातगुणे पर्याप्तकालमें कमप्रदेशका संचय करानेके लिये और संक्लेश परिणामके द्वारा बादर पृथिवीकायिक जीवोंकी अपेक्षा असंख्यागुणे द्रव्यका उत्कर्षण करानेके लिये सातिरेक दो हजार सागर तक त्रसकायिक जीवोंमें भ्रमण कराया है।
शंका-यदि बादर पृथिवीकायिक जीवोंकी अपेक्षा त्रसकायिक जीवोंका योग असंख्यातगुणा होता है और पर्याप्तकाल भी संख्यातगणा और असंख्यातगुणा होता है तथा उत्कर्षण द्रव्य भी असंख्यातगुणा होता है तो गुणितकाशवाले जीवको त्रसकायिक जीवोंमें ही कर्मस्थितिप्रमाण काल तक क्यों नहीं भ्रमण कराया ?
समाधान नहीं, क्योंकि सपर्यायकी कायस्थिति कर्मस्थिति प्रमाण नहीं है, इसलिए कर्मस्थिति काल तक त्रसकायिकोंमें भ्रमण नहीं कराया है।
शंका—तो त्रसोंकी कायस्थितिमें अनेक बार भ्रमण क्यों नहीं कराया ?
समाधान नहीं, क्योंकि कायस्थितिको समाप्त करके जो जीव एकेन्द्रियपनेको प्राप्त हुआ है वह जीव कर्मस्थितिकालके भीतर पुनः त्रसकायस्थितिको समाप्त नहीं कर सकता है, अतः उसे पुनः एकेन्द्रियोंमें प्रवेश करना होगा और ऐसा होनेसे कर्मस्थितिकालके अन्दर वह जीव एकेन्द्रियपर्यायसे निकल नहीं सकेगा और एकेन्द्रिय पर्यायसे न निकल सकनेसे उसके बहुत द्रव्यके संचयके अभावका प्रसङ्ग प्राप्त होगा। इसलिए त्रसोंकी कायस्थितिमें अनेक बार नहीं भ्रमण कराया है।
तेतीस सागरकी स्थितिवाले नारकियोंमें यदि यह जीव निरन्तर उत्पन्न हो तो दो बार ही उत्पन्न होता है यह बतलानेके लिये अन्तिम नरकसम्बन्धी तेतीस सागरकी
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