Book Title: Kasaypahudam Part 06
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२]
उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए सामित्तं भणिदं । एवं जेणेदं देसामासियवयणं तेण तसट्ठिदिकालभंतरे बहुवारं तेत्तीससागरोवमिएसु णेरइएसु उप्पन्जिय तदसंभवे छट्ठीए तत्थ वि असंभवे पंचमादिसु उप्पण्णो ति दहव्वं । णेरइएसु चेव बहुवारं किमट्ठमुप्पाइदो ? तिव्वसंकिलेसेण बहुदव्वुक्कड्डणटुं। चरिमसमयणेरइयं मोत्तण असंखेपद्धाए अणंतरहेद्विमसमए उक्कस्ससामित्तं दादव्वमुवरि आउए बज्झमाणे जहण्णाउअबंधगद्धामेत्ताणं मिच्छत्तसमयपबद्धाणं संखेजदिभागस्स खयप्पसंगादो त्ति ? ण, आउअबंधगद्धादो संखेज गुणाए उवरिमविस्समणद्धाए संचिददव्वस्स णट्ठदव्वादो संखेजगुणत्तुवलंभादो। आउअबंधगद्धादो जहण्णविस्समणद्धा संखेजगुणा त्ति कत्तो णव्वदे ? णेरइयचरिमसमए सामित्तपरूवणण्णहाणुववत्तीदो । एत्थ उपसंहारो जहा वेयणाए परूविदो तहा परूवेयव्वो।
स्थितिको लेकर दो भव ग्रहण करता है, ऐसा कहा है। यतः यह वाक्य देशामर्षक है अतः उसका ऐसा अर्थ लेना चाहिए कि त्रसकायस्थितिकालके भीतर बहुत बार तेतीस सागरकी स्थितिवाले नारकियोंमें उत्पन्न हआ। वहाँ उत्पन्न होना संभव न होने पर छठे नरकमें उत्पन्न हुअ । छठेमें भी उत्पन्न होना संभव न होने पर पाँचवें आदि नरकोंमें उत्पन्न हुआ।
शंका–नारकियों में ही बहुत बार क्यों उत्पन्न कराया है ?
समाधान-तीब्र संक्लेशके द्वारा बहुत द्रव्यका उत्कर्षण करनेके लिये बहुत बार नारकियोंमें उत्पन्न कराया है।
शंका—अन्तिम समयवर्ती नारकीको छोड़कर आयुबन्धके योग्य अतिसंक्षेप कालके पूर्व अनन्तरवर्ती अधस्तन समयमें मिथ्यात्वके उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्मका स्वामित्व देना चाहिये, क्योंकि तदनन्तर आयुका बन्ध होने पर आयुबन्धके जघन्य कालप्रमाण मिथ्यात्वके समयप्रबद्धोंके संख्यातवें भागके क्षयका प्रसङ्ग आता है।
समाधान-नहीं, क्योंकि आयुबन्धके कालसे सख्यातगुणे ऊपरके विश्राम कालमें सश्चित होनेवाला द्रव्य नष्ट हुए द्रव्यसे सख्यातगुणा पाया जाता है।
शंका-आयुबन्धके कालसे जघन्य विश्रामकोल संख्यातगुणा है यह किस प्रमाणसे जाना ?
समाधान- यदि ऐसा न होता तो नारकीके अन्तिम समयमें उत्कृष्ट प्रदेशके स्वामित्वका कथन न करते।
जैसा वेदनाखण्डमें उपसंहार कहा है वैसा ही यहाँ कहना चाहिये।
विशेषार्थ—उत्कृष्ट प्रदेशसंचयके लिये छह बातें आवश्यक बतलाई हैं-भवाद्धा, आयु, योग, संक्लेश, उत्कर्षण और अपकर्षण । इन्हीं छह आवश्यक कारणोंको ध्यानमें रखकर उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्मके स्वामित्वका कथन किया है और बतलाया है कि क्यों बादर पृथिवीकायिक जीवोंमें उत्पन्न कराकर त्रसकायमें उत्पन्न कराया है। त्रसोंमें नरकगतिमें संक्रश
परिणाम अधिक होते हैं अतः बार बार जहाँ तक शक्य हो वहाँ तक नरकमें उत्पन्न कराया है। सातवें नरकमें लगातार दो बार ही जीव जन्म ले सकता है अतः दूसरी वार सातवें नरकमें तेतीस सागरको स्थिति लेकर उत्पन्न हुए उस जोवके अन्तिम समयमें उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्मका
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