Book Title: Kasaypahudam Part 06
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [ पदेसविहत्ती ५ ७५. संपहि कसायभागमावलि० असंखे०भागेण भागं घेत्तूणेगखंडं पुध दृविय सेसदव्वं चत्तारि सरिसपुंजे कादू ण तदो आवलि. असंखे०भागमवद्विदविरलणं कादृण
दोनोंमें कोई अन्तर नहीं है। आगे भी जहाँ जहाँ आवलिके असंख्यातवें भागका विरलन करके उसके ऊपर जुदे रखे द्रव्यके समान भाग करके एक एक रूपपर एक एक भाग रखनेका कथन किया है वहाँ उसका मतलब जुदे रखे हुए द्रव्यमें आवलिके असंख्यातवें भागका भाग देना ही समझना चाहिये । मूलमें अथवा करके विभागका दूसरा क्रम भी बतलाया है। उस क्रमके अनुसार नोकषायको जो द्रव्य मिला है उसके पाँच समान भाग करो। फिर पहले भागमें आवलिके असंख्यातवें भागसे भाग दो और लब्ध एक भागप्रमाण द्रव्यको अलग रख दो। फिर दूसरे भागर्म कुछ अधिक आवलिके असंख्यातवें भागसे भाग दो और लब्ध एक भागप्रमाण द्रव्यको अलग स्थापित कर दो। फिर तीसरे भागमें उससे भी कुछ अधिक आवलिके असंख्यातवें भागसे भाग दो और लब्ध एक भागप्रमाण द्रव्यको पृथक् स्थापित करो। फिर चौथे भागमें उससे भी और अधिक आवलिके असंख्यातवें भागसे भाग दो और लब्ध एक भागप्रमाण द्रव्यको पृथक् स्थापित करो । भाग दे दे करके पृथक् स्थापित किये हुए इन चारों भागोंको पाँचवें समान भागमें जोड़ देनेसे वेदका द्रव्य होता है। और पहले, दूसरे, तीसरे
और चौथे समान भोगमें भाग देकर जो पृथक् द्रव्य स्थापित किये थे उन द्रव्योंके सिवाय पहले, दूसरे, तीसरे और चौथे समान भागमेंसे जो द्रव्य शेष बचता है वह क्रमानुसार जुगुप्सा, भय, हास्य-शोक और रति अरतिका भाग होता है। जैसे नोकषायके द्रव्यका प्रमाण २६८८० है। इसके पाँच समान भाग करनेसे प्रत्येक भागका प्रमाण ५३७६ होता है । पहले ५३७६ में आवलि के असंख्यातवें भाग ४से भाग देने से लब्ध एक भाग १३४४ आता है, इसे पृथक स्थापित करनेसे शेष द्रव्य ५३७६-१३४४ =४०३२ बचता है। दूसरे समान भाग ५३७६ में कुछ अधिक आवलिके असंख्यातवें भाग ६ से भाग देने से लब्ध एक भाग ८९६ आता है। इसे पृथक् स्थापित करनेसे शेष द्रव्य ५३७६ -८९६४४८० बचता है। तीसरे ५३७६ में उससे भी कुछ अधिक आवलिके असंख्यातवें भाग ८ का भाग देनेसे लब्ध एक भाग ६७२ आता है । इसे पृथक स्थापित करनेसे शेष द्रव्य ५३७६-६७२ = ४७०४ बचता है। चौथे ५३७६ में उससे भी कुछ अधिक आवलिके असंख्यातवें भाग १२से भाग देनेसे लब्ध एक भाग ४४८ आता है। उसे पृथक स्थापित करनेसे शेष द्रव्य ५३७६-४४८ = ४९२८ बचता है। इस प्रकार भाग दे दे करके पृथक् स्थापित किये गये एक एक भागको १३४४ + ८९६+ ६७२ + ४४८=३३६० पाँचवे समान भाग ५३७६ में मिला देनेसे वेदका द्रव्य ८७३६ होता है और बाकी बचे द्रव्योंमें से क्रमशः ४०३२ द्रव्य जुगुप्साका, ४४८० द्रव्य भयका, ४७०४ द्रव्य हास्य-शोकका और ४९२८ द्रव्य रति-अरतिका होता है। इस क्रमसे विभाग करने में भी बटवारेका परिमाण वही आता है जो पहले प्रकारसे करनेसे आता है। हमारे उदाहरणमें जो अन्तर पड़ गया है उसका कारण यह है कि भागहार आवलिके असंख्यातवें भागको हमने भाग देनेकी सहूलियतके लिये अधिक बढ़ा लिया है। अर्थात् उसका प्रमाण ४ कल्पित करके आगे कुछ अधिक कुछ अधिकके स्थानमें ६,८ और १२ कर लिया है। यदि वह ठीक परिमाण में हो तो द्रव्यका परिमाण पहले प्रकारके अनुसार ही निकलेगा।
६७५ अब कषायको जो भाग मिला था उसमें आवलिके असंख्यातवें भागका भाग देकर एक भागको पृथक् स्थापित करो। शेष द्रव्यके चार समान पुज करो। उसके बाद आवलिके असंख्यातवें भागका अवस्थित विरलन करके उसके ऊपर पहले घटाये हुए
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