Book Title: Kasaypahudam Part 06
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२] उत्तरपयडिपदेसविहत्तीए सादिआदिपरूवणा ४१ सादि० अणादि० धुव० अद्धवं वा । णवरि' लोभ संजल० अजह० अणुक्कस्सभंगो। सम्म०-सम्मामि० चत्तारि पदा कि सादि० ४ १ सादि० अद्भुवं वा । अणंताणु०४ उक्क० अणुक० जह० किं सादि० ४ ? सादि० अद्धवं वा । अजह० किं सादि० ४ १ सादि० अणादि० धुव० अद्धवा० । ___६९१. आदेसेण णेरइय० मोह० अट्ठावीसं पय० उक्क० अणुक्क० जह० अजह० पदेसविह० कि सादि० ४ ? सादि० अद्धवा० । एवं चदुगदीसु । एवं णेदव्वं जाव अणाहारि त्ति । अध्रुव है । इतना विशेष है कि लोभ संज्वलनकी अजघन्य प्रदेशविभक्तिमें अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिके समान भंग होते हैं । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृतिमें चारों बिभक्तियाँ क्या सादि है, अनादि हैं, ध्रुव हैं अथवा अध्रुव हैं ? सादि और अध्रुव हैं। अनन्तानुबन्धिचतुष्कमें उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट और जघन्य प्रदेशविभक्ति क्या सादि है, अनादि है, ध्रुव है अथवा अध्रुव है ? सादि और अध्रुव है। अजघन्य प्रदेशविभक्ति क्या सादि है, अनादि है, ध्रुव है अथवा अध्रुव है ? सादि, अनादि, ध्रुव और अध्रुव है।
६९१. आदेशसे नारकियोंमें मोहनीयकी अट्ठाईस प्रतियोंकी उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट, जघन्य और अजघन्य प्रदेशविभक्ति क्या सादि है, अनादि है, ध्रुव है अथवा अध्रुव है ? सादि और अध्रुव है। इसी प्रकार चारों गतियोंमें जानना चाहिए। इस प्रकार अनाहारीपर्यन्त ले जाना चाहिए।
विशेषार्थ-मिथ्यात्व, मध्यकी आठ कषाय और पुरुष वेदके सिवा आठ नोकषाय इनका उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट सत्त्व कादाचित्क है तथा इनका जघन्य प्रदेशसत्कर्म क्षपणाके अन्तिम समयमें होता है, अतः उक्त प्रकृतियोंका उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट और जघन्य प्रदेशसत्कर्म सादि और अध्रुव है । किन्तु इन प्रकृतियोंका अजघन्य प्रदेशसत्कर्म अनादि, ध्रुव और अध्रुव है । क्षपणाके अन्तिम समयमें जघन्य प्रदेशसत्कर्मके प्राप्त होनेके पूर्व तक अनादिसे अजघन्य प्रदेशसत्कर्म रहता है इसलिये तो अनादि है। तथा अभव्योंकी अपेक्षा ध्रुव और भव्योंकी अपेक्षा अध्रुव है। पुरुषवेदके उदयसे क्षपकश्रेणी पर चढ़ा हुआ गुणितकाशवाला जो जीव जब स्त्रीवेदकी अन्तिम फालिको पुरुष वेदमें संक्रमित करता है तब एक समयके लिये पुरुषवेदकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति होती है। यही जीव जब पुरुषवेद और छह नोकषायोंके द्रव्यको संज्वलन क्रोधमें संक्रमित करता है तब संज्वलन क्रोधकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति होती है। यही जीव जब संज्वलन क्रोधके द्रव्यको संज्वलन मानमें संक्रमित करता है तब संज्वलन मानकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति होती है। यही जीव जब संज्वलन मानके द्रव्यको संज्वलन मायामें संक्रमित करता है तब संज्वलन मायाकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति होती है । तथा जब यही जीव संज्वलन मायाके द्रव्यको संज्वलन लोभमें संक्रमित करता है तब संज्वलन लोभकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्ति होती है। तथा इन पाँचोंका जघन्य प्रदेशसत्कर्म अपनी अपनी क्षपणाके अन्तिम समयमें होता है। चूंकि ये उत्कृष्ट और जघन्य प्रदेशसत्कर्म एक समयके लिए होते हैं, इसलिये सादि और अध्रुव हैं। तथा इन पांचों प्रकृतियोंकी अजघन्य प्रदेशविभक्ति अनादि, ध्रुव और अध्रुव है। क्षपणाके अन्तिम समयमें जघन्य प्रदेशसत्कर्मके प्राप्त होनेके पूर्व तक अनादिसे
१ ता० आ० प्रत्योः 'अडवाणु णवरि' इति पाठः ।
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