Book Title: Kasaypahudam Part 06
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [पदेसविहत्ती ५ ६३८. भुजगारविहत्तीए तत्थ इमाणि तेरस अणिओगद्दाराणि-समुक्त्तिणादि जाव अप्पाबहुए त्ति । तत्थ समुक्कित्तणाणुगमेण दुविहो णि०-ओघेण आदेसे० । ओघेण अत्थि० मोह. भुज-अप्पदर-अवहिदविहत्तिया जीवा। एवं सव्वमग्गणासु णेदव्वं जाव अणाहारि त्ति ।
६३९. सामित्ताणु० दुविहो णिद्द सो-ओघेण आदेसे० । ओघेण मोह० भुज०अप्प०-अवट्ठिदाणि' कस्स ? मिच्छादिहिस्स सम्मादिहिस्स वा । एवं सव्वणेरइयतिरिक्खचउक्क०-मणुस्सतिय-देव०-भवणादि जाव उवरिमगेवजा त्ति । पंचिंदियतिरिक्खअपज मोह. भुज०-अप्पद०-अवट्टि० कस्स ? अण्णदरस्स मिच्छादिहिस्स । एवं मणुसअपज० । अणुद्दिसादि जाव सव्वट्ठसिद्धि त्ति एवं चेव । णवरि सम्मादिहिस्से
विशेषार्थ ओघसे और आदेशसे उत्कृष्ट विभक्तिवाले जीव सबसे थोड़े हैं। जो राशियाँ अनन्त हैं उनमें उत्कृष्ट विभक्तिवालोंसे अनुत्कृष्ट विभक्तिवाले अनन्तगुणे हैं। जिनकी राशि असंख्यात हैं उनमें उत्कृष्ट विभक्तिवालोंसे अनुत्कृष्ट विभक्तिवाले असंख्यातगुणे हैं और जिनकी राशि संख्यात हैं उनमें उत्कृष्ट विभक्तिवालोंसे अनुत्कृष्ट विभक्तिवाले संख्यातगुणे हैं। इसी प्रकार जघन्य प्रदेशविभक्तिवाले सबसे कम हैं और उनसे अजघन्य प्रदेशविभक्तिवाले अपनी अपनी राशि अनुसार अनन्तगुणे, असंख्यातगुणे या संख्यातगुणे हैं।
- इस प्रकार बाईस अनुयोगद्वार समाप्त हुए । ६३८. भुजकारविभक्ति का कथन करते हैं। उसमें समुत्कीर्तनासे लेकर अल्पबहुत्वपर्यन्त तेरह अनुयोगद्वार होते हैं। उनमें समुत्कीर्तनानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ
और आदेश । ओघसे मोहनीयकी भुजगार, अल्पतर और अवस्थित विभक्तिवाले जीव हैं। इसी प्रकार सब मार्गणाओंमें जानना चाहिये । अर्थात् सभी मार्गणाओंमें मोहनीयकी उक्त तीनों विभक्तिवाले जीव पाये जाते हैं।
विशेषार्थ-ओघसे और आदेशसे मोहनीयकर्मकी मूलप्रकृतिमें भुजगार, अल्पतर और अवस्थित ये तीन ही विभक्तियाँ होती हैं, चौथी अवक्तव्य विभक्ति नहीं होती, क्योंकि मोहनीयकी सत्ता न रहकर यदि पुनः उसकी सत्ता हो तो अवक्तव्य विभक्ति हो सकती थी, किन्तु ऐसा संभव नहीं है, क्योंकि दसवें गुणस्थानके अन्तमें मोहनीयकी सत्त्वव्युच्छित्ति करके जीव क्षीणकषाय हो जाता है, फिर वह लौटकर नीचे नहीं आता, अतः अवक्तव्यविभक्ति नहीं होती।
६३९. स्वामित्वानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मोहनीयकी भुजगार, अल्पतर और अवस्थित विभक्तियाँ किसके होती हैं ? मिथ्यादृष्टि अथवा सम्यग्दृष्टिके होती हैं। इसी प्रकार सब नारकी, चार प्रकारके तिर्यञ्च, तीन प्रकारके मनुष्य, सामान्य देव, और भवनवासीसे लेकर उपरिम अवेयक तकके देवोंमें जानना चाहिये । पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्तकोंमें मोहनीयको भुजगार, अल्पतर और अवस्थित विभक्तियां किसके होती हैं ? किसी भी मिथ्यादृष्टि जीवके होती हैं। इसी प्रकार मनुष्य अपर्याप्तकोंमें जानना चाहिये । अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धितकके देवोंमें इसी प्रकार जानना चाहिये । इतना विशेष है कि
१. प्रा०प्रतौ 'भुज अवहिदाणि' इति पाठः ।
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