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४०, ८०, १६०, ३२० ६४०, १२८०, यही गुणश्रेणी निर्जरा है। गुणश्रेणी निर्जरा में अशुभ कर्मों का रस भी मन्द पड़कर उदय में आता है। गुण श्रेणी निर्जरा वैसे शुभाशुभ दोनों कर्मों की होती है। चौथे गुणस्थान में निरन्तर गुणश्रेणी निर्जरा नहीं मेरी प्रो.मा य.-३४१. ३६१ सस्ती ग्रन्थमाला)। संयम (व्रत) होने पर ही निरन्तर गुणश्रेणी निर्जरा होती है (धवल-८/८३)। अतः पंचम गुणस्थान से निरन्तर
गुणश्रेणी निर्जरा होती है। (ज.ध. १२)। २१. प्रश्न : गुणसंक्रमण किसे कहते हैं ? उत्तर : जहाँ पर प्रतिसमय असंख्यात गुणश्रेणीक्रम से परमाणुप्रदेश
अन्य प्रकृति रूप परिणमे, उसे गुणसंक्रमण कहते हैं ? २२. प्रश्न : स्थितिखण्डन (स्थितिकांडकघात) किसे कहते हैं ?
उत्तर : कर्मों की स्थिति के उपरिम अंश, खण्ड या पौरों को
खरोंचकर नष्ट कर देने को स्थितिखण्डन या स्थितिकाण्डकघात कहते हैं। स्थितिकाण्डकघात के द्वारा कर्मों का स्थितिसत्त्व कम हो जाता है।
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