Book Title: Karananuyoga Part 1
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 29
________________ के पर्याप्त और अपर्याप्त की अपेक्षा दो-दो भेद करने से जीवसमास के चौदह भेद होते हैं ४३. प्रश्न : जीवसमास के सत्तावन भेद कौन कौन से हैं ? उत्तर : पृथिवी-जल-अग्नि, वायुकायिक, नित्य निगोद तथा इतर निगोद इन छह प्रकार के जीवों के बादर और सूक्ष्म की अपेक्षा दो-दो भेंद, प्रत्येक वनस्पति के प्रतिष्ठित और अप्रतिष्ठित की अपेक्षा दो भेद, इस प्रकार एकेन्द्रिय जीव के चौदह भेद हुए। उनमें बस के द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, सैनी, पंचेन्द्रिय और असैनी पंचेन्द्रिय ये पाँच भेद मिलाने से १६ भेद होते हैं। उनके पर्याप्त, निर्वृत्यपर्याप्त और लब्ध्यपर्याप्त की अपेक्षा तीन-तीन भेद होने से सब मिलकर जीवसमास के सत्तावन भेद होते हैं। ४४. प्रश्न : जीवसमास के अठानवे भेद कौन-कौन से हैं ? उत्तर : एकेन्द्रिय के उपर्युक्त १४ भेद के पर्याप्त, निर्वृत्यपर्याप्त और लब्ध्यपर्याप्त की अपेक्षा तीन-तीन भेद हैं, अतः एकेन्द्रिय सम्बन्धी (१४ x ३ ) = ४२ भेद होते हैं । विकलत्रय के पर्याप्त, निर्वृत्यपर्याप्त और लब्ध्यपर्याप्त की अपेक्षा तीन-तीन भेद हैं, अतः विकलत्रय के (३ x ३ ) = ६ भेद होते हैं। (२४)

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