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होता है। इसी को क्षयोपशम निमित्तक अवधिज्ञान भी
कहते हैं। यह ज्ञान शंखादि चिहनों से उत्पन्न होता है। १५६. प्रश्न : गुणप्रत्यय अवधिज्ञान के कितने भेद हैं ? उत्तर : गुणप्रत्यय अवधिज्ञान के छह भेद होते हैं
१. अनुगामी : जो अवधिज्ञान अपने स्वामी (जीव) के साथ जाय उसे अनुगामी कहते हैं। इसके तीन भेद है (क) जो दूसरे क्षेत्र में अपनी स्वामी के साथ जाय उसे क्षेत्रानुगामी कहते हैं। (ख) जो दूसरे भव में साथ जाय उसे भवानुगामी कहते हैं। (ग) जो दूसरे क्षेत्र तथा भव दोनों में साथ जाय उसे उभयानुगामी कहते हैं। २. अननुगामी : जो अपने स्वामी (जीव) के साथ न जाय उसे अननुगामी कहते हैं। इसके भी तीन भेद हैं- (क) क्षेत्राननुगामी (ख) भवाननुगामी और (ग) उभयाननुगामी । (३) वर्धमान : जो शुक्लपक्ष के चन्द्र की तरह अपने अन्तिम स्थान तक बढ़ता जाय उसे वर्धमान अवधिज्ञान कहते हैं। (४) हीयमान : जो कृष्ण पक्ष के चन्द्र की तरह अन्तिम स्थान तक घटता जाय उसे हीयमान कहते हैं। (५) अवस्थित : जो सूर्यमण्डल के समान न घटे, न बढ़े उसे अवस्थित कहते हैं। (६) अनदस्थित : जो चन्द्र-मण्डल की तरह कभी कम हो, कभी अधिक हो उसे अनवस्थित कहते हैं।
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