Book Title: Karananuyoga Part 1
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 137
________________ २५२. प्रश्न : सासादन सम्यक्त्व किसे कहते हैं ? उत्तर : प्रथमोपशम सम्यक्त्व के काल में कम-से-कम एक समय और अधिक-से-अधिक छह आवली प्रमाण काल शेष रहने पर अनन्तानुबन्धी क्रोध-मान-माया-लोम में से किसी एक प्रकृति का उदय आ जाने पर जिसने सम्यक्त्व की विराधना कर दी है, किन्तु मिथ्यात्व को प्राप्त नहीं हुआ है उन आसादन रूप परिणामों को सासादन सम्यक्त्य कहते हैं। यह अवस्था मात्र द्वितीय गुणस्थान में रहती है। यह जीव नियम से मिथ्यात्व अवस्था को प्राप्त होता है। २५३. प्रश्न : मिथ्यात्व किसे कहते हैं ? उत्तर : जो जीव जिनेन्द्रदेव के कहे हुए आप्त, आगम, पदार्थ का श्रद्धान नहीं करता है परन्तु मिथ्यात्व प्रकृति के उदय से कुगुरुओं के कहे हुए या बिना कहे हुए भी पदार्थ का विपरीत श्रद्धान करता है उसे मिथ्यात्य कहते हैं। यह प्रथम गुणस्थान की अवस्था है। २५४. प्रश्न : संज्ञी मार्गणा के कितने भेद हैं और उनका क्या स्वरूप है ? उत्तर : संज्ञी मार्गणा के दो भेद हैं- (१) संज्ञी और (२) असंजी। नो इन्द्रियावरण कर्म के क्षयोपशम से जो जीव शिक्षा (हितग्रहण, अहितत्याग रूप शिभा), क्रिया (इच्छापूर्वक

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