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अनन्तानुबन्धी चतुष्क इन छह प्रकृतियों का क्षय कर चुकता है, मात्र सम्यक्त्व प्रकृति का उदय जब शेष रह जाता है तब वह कृतकृत्यवेदक सम्यग्दृष्टि कहलाता है
और इसका काल मात्र अन्तर्मुहूर्त का ही है। २५०. प्रश्न : क्षायिक सम्यग्दर्शन किसे कहते हैं ? उत्तर : सात प्रकृतियों के क्षय से जो सम्यग्दर्शन होता है, उसे
सायिक सम्यग्दर्शन कहते हैं। यह सम्यग्दर्शन सादि अनन्त है। दर्शन मोहनीय कर्म के क्षय का प्रारम्भ कर्मभूमिज मनुष्य केवली और श्रुतकेवली के पादमूल में ही करता है किन्तु निष्ठापन चारों गतियों में हो सकता है। क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीव चार भव से अधिक संसार में नहीं रहता है। चतुर्थ गुणस्थान से चौदहवें गुणस्थान पर्यन्त एवं सिद्ध
परमेष्ठी के भी यह सम्यक्त्व पाया जाता है। २५१. प्रश्न : मिश्र सम्यक्त्व किसे कहते हैं ? उत्तर : सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृति के उदय से जहाँ ऐसे परिणाम हो
जिन्हें न सम्यक्त्व रूप कह सकें और न मिथ्यात्वरूप अर्थात् जिस जीव के तत्त्व के विषय में श्रद्धान और अश्रद्धान रूप परिणाम हों, उसे मिश्र सम्यक्त्व कहते हैं। यह मात्र तृतीय गुणस्थान में होता है।
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