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गुणस्थान तथा कषाय के अभाव में ग्यारहवें से चौदहवें तक चार गुणस्थान होते हैं। ज्ञानमार्गणा की अपेक्षा मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान में चतुर्थ से बारहवें तक नौ गुणस्थान, मनःपर्ययज्ञान में छठे से बारहवें तक सात गणस्थान और केवलज्ञान में अन्त के दो गुणस्थान होते हैं। कुमतिज्ञान, कुश्रुतज्ञान
और कुअवधिज्ञान में प्रारम्भ के तीन गुणस्थान होते हैं। संयममार्गणा की अपेक्षा सामायिक और छोदोपस्थापना संयम में छठे से नौवें तक चार गुणस्थान, परिहारविशुद्धि संयम में कुता और सतना हो गुणस्थान, मध्यसागराया संयम में दसवां गुणस्थान, यथाख्यात संयम में ग्यारहवें से चौदहवें तक चार गणस्थान, संयमासंयम में पाँचवां गणास्थान
और असंयम में प्रारम्भ के चार गुणस्थान होते हैं। दर्शनमार्गणा की अपेक्षा चक्षुदर्शन और अचक्षुदर्शन में प्रारम्भ से बारहवें तक बारह गुणस्थान, अवधिदर्शन में चौथे से बारहवें तक नौ गुणस्थान और केवलदर्शन में अन्त के दो गुणस्थान होते हैं। लेश्यामार्गणा की अपेक्षा कृष्ण, नील और कापोत लेश्या में प्रारंभ के चार गुणस्थान, पीत और पद्मलेश्या में प्रारंभ के सात गुणस्थान और शुक्ललेश्या में प्रारंभ के
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