Book Title: Karananuyoga Part 1
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 148
________________ करणानुयोग चतुर्गति - युगावर्त - लोकालोक - विभागविद् । हृदि प्रणेयः करणानुयोगः करणातिगैः । । अधो मध्योर्ध्वलोकानां, संख्यानामादिवर्णनम् । क्रियते यत्र स ज्ञेयो, योगो हि करणात्मकः ।। जो चार गतियों, युगों का परिवर्तन तथा लोकालोक के विभाग को जानने वाला है, उसे इन्द्रियातील पुरुषों को करणानुयोग जानना चाहिए । अधो, मध्य और ऊर्ध्व लोक की संख्या तथा नामादि का वर्णन जिसमें किया जाता है, उसे करणानुयोग जानो । यः कालभेदं गुणधामभेदं, लोकस्य भेदं वसुधाधराणाम् । संस्थानभेदं बहुकर्मभेदं, भावस्य भेदं च नृणां ब्रवीति । । प्राणायमानो जिनवाङ्मयस्य, ध्यानैकपात्रं विबुधेश्वराणाम् । प्रियो मुनीनां तपसा युतानां, स कथ्यते वै करणानुयोगः ।। जो उत्सर्पिणी अवसर्पिणी आदि काल के भेदों को, गुणस्थान के भेदों को, लोक के भेदों को, पर्वतों के आकार-भेद को, कर्मों (१४३)

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