Book Title: Karananuyoga Part 1
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 135
________________ वाले जीवों का अपूर्वकरण गुणस्थान के प्रथम पाये में मरण नहीं होता है, सभी गुणस्थानों में द्वितीयोपशम के काल में मरण होने पर जीव नियम से देवगत्ति में जाता २४६. प्रश्न : मायोपशमिक सम्यग्दर्शन किसे कहते हैं ? उत्तर : मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी क्रोध-मान माया-लोभ इन छह सर्वघाति-प्रकृतियों के वर्तमान काल में उदय आने वाले निषेकों का उदयाभावी क्षय, आगामी काल में उदय आने वाले निषेकों का सदवस्थारूप उपशम तथा सम्यक्त्व प्रकृति नामक देशघातिप्रकृति का उदय रहते हुए जो सम्यग्दर्शन होता है उसे क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन कहते हैं। इस सम्यक्त्व में सम्यक्त्व प्रकृति के उदय से चल, मलिन, अवगाढ़ रूप दोष उत्पन्न होते हैं। यह जीव सम्यक्त्व प्रकृति के उदय का वेदन करता है इसलिए उनके सम्यक्त्व को वेदक सम्यक्त्व भी कहते हैं। यह सम्यग्दर्शन चतुर्थ गुणस्थान से सप्तम् गुणस्थान पर्यन्त होता है। जो भायोपशमिक सम्यग्दृष्टि जीव क्षायिक सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के सम्मुख होता हुआ मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व और (१३०)

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