Book Title: Karananuyoga Part 1
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 141
________________ क्षायोपशमिक तथा पर्याप्त अवस्था में औपशमिक, क्षायिक और क्षायोपशमिक तीनों सम्यग्दर्शन होते है। द्वितीयादि पृथ्वीस्थ नारकियों की अपर्याप्त अवस्था में एक भी सम्यग्दर्शन नहीं होता है और पर्याप्त अवस्था में औपशमिक तथा क्षायोपशमिक दो सम्यग्दर्शन होते है । तियंचगति में भोगभूमिज तियंच के अपर्याप्त अवस्था में क्षायिक और कृतकृत्यवेदक की अपेक्षा क्षायोपशमिक दो सम्यग्दर्शन होते हैं तथा पर्याप्त अवस्था में तीनों सम्यग्दर्शन होते हैं। मनुष्यगति में मनुष्य के अपर्याप्त अवस्था में श्वायिक और कृतकृत्यवेदक की अपेक्षा क्षायोपशमिक दो सम्यग्दर्शन तथा पर्याप्त अवस्था में तीनों समान होते है। देव और कलवारी देवियों के अपर्याप्त अवस्था में एक भी सम्यग्दर्शन नहीं होता है, किन्तु पर्याप्त अवस्था में औपशमिक और क्षयोपशमिक दो सम्यक्त्व होते हैं। वैमानिक देवों में अपर्याप्त और पर्याप्त दोनों ही अवस्थाओं में तीनों प्रकार के सभ्यग्दर्शन होते हैं। इन्द्रिय मार्गणा की अपेक्षा एकेन्द्रिय से लेकर चतुरिन्द्रिय तक के जीवों के एक भी सम्यग्दर्शन नहीं होता परन्तु पंचेन्द्रिय जीवों के तीनों सम्यग्दर्शन होते हैं। काय मार्गणा की अपेक्षा पाँच स्थावर जीवों के एक भी सम्पद नहीं होता है और त्रस जीवों के तीनों सम्यक्त्व होते हैं। (१३६)

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