Book Title: Karananuyoga Part 1
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 140
________________ २६०. प्रश्न : उपयोग के कितने भेद हैं और उनका क्या स्वरूप उत्तर : उपयोग के दो भेद हैं- (१) साकार उपयोग और (२) अनाकार उपयोग। साकार उपयोग के आठ भेद हैं- पाँच प्रकार का सम्यग्ज्ञान और तीन प्रकार का अज्ञान अनाकार उपयोग के चार भेद हैं- (१) चक्षुदर्शन (२) अचक्षुदर्शन, (३) अवधिदर्शन और (४) केवलदर्शन । मति, श्रुत, अवधि और मनःपर्यय इनके द्वारा अपने-अपने विषय का अन्तर्मुहूर्त काल पर्यन्त जो विशेष ज्ञान होता है उसे साकार उपयोग कहते हैं। एक वस्तु के ग्रहण रूप चेतना का यह परिणमन छमस्थ जीव के अधिक से अधिक अन्तर्मुहूर्त काल तक ही रह सकता है। इन्द्रिय, मन और अवधि के द्वारा अन्तर्मुहूर्त काल तक पदार्थों का जो सामान्य रूप से ग्रहण होता है उसको निराकार उपयोग कहते हैं। निराकार उपयोग छद्मस्थ जीव के अधिक से अधिक अन्तर्मुहूर्त तक होता है। २६१. प्रश्न : किस मार्गणा में कौन-सा सम्यग्दर्शन होता है ? उत्तर : गतिमार्गणा की अफेा नरकगति में प्रथम पृथ्वीस्थ नारकियो की अपर्याप्त अवस्था में क्षायिक और कृतकृत्यवेदक की अपेक्षा (१३०

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