Book Title: Karananuyoga Part 1
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 98
________________ गुणस्थान में होता है तथा सिद्ध अवस्था में भी रहता है। मतिज्ञान और श्रुतज्ञान के बाद सीधा केवलज्ञान हो सकता है तथा मति, श्रुत और अवधिज्ञान के बाद भी केवलज्ञान हो सकता है और भात, श्रुत, अवांधे और मनःपर्ययज्ञान के बाद भी केवलज्ञान हो सकता है। १७७. प्रश्न : संयम किसे कहते हैं ? उत्तर : अहिंसा आदि महाव्रतों को धारण करना ईर्या आदि समितियों का पालन करना, क्रोध आदि कषायों का निग्रह करना, मन, वचन और काय की प्रवृत्ति रूप दण्डों का त्याग करना तथा स्पर्शन आदि इन्द्रियों के विषयों को जीतना, उसे संयम कहते हैं। १७६. प्रश्न : संयम की उत्पत्ति का अन्तरंग कारण क्या है ? उत्तर : प्रत्याख्यानावरण क्रोध-मान-माया-लोभ के क्षयोपशम से, बादर संज्वलन के उदय से अथवा सूक्ष्म लोभ के उदय से और मोहनीय कर्म के उपशम से अथवा क्षय से नियम से संयम रूप भाव उत्पन्न होते हैं। १७E. प्रश्न : संयम मार्गणा के कितने भेद है, उनकी उत्पत्ति के क्या कारण है और कौन-कौन से गुणस्थान में वे पाये जाते हैं ?

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