Book Title: Karananuyoga Part 1
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 130
________________ मिलाने से नौ पदार्थ होते हैं जिसमें ज्ञान-दर्शन रूप चेतना पाई जाये उसे जीव कहते हैं। जिसमें चेतना न हो उसे अजीव कहते हैं। जो सम्यक्त्व गुण से या व्रत से युक्त हैं उनको पुण्यजीव और इससे जो विपरीत हैं उन्हें पापजीव कहते हैं । अचेतन जिनबिम्ब आदि आयतनों को पुण्य अजीव तथा अचेतन अनायतनों को पाप अजीव अथवा शुभ कर्मों को पुण्य अजय और अशुभ कर्मों को पापअजीव कहते हैं। अकर्म के कर्मरूप होने को अथवा जीव के जिन परिणामों से कर्म आते हैं, उन मिध्यात्वादि रूप परिणामों को या मन-वचन-काय के द्वारा होने वाले आत्मप्रदेश परिस्पन्दन को तथा बन्ध के कारणों को आस्रव कहते हैं। अनेक पदार्थों में एकत्व बुद्धि के उत्पादक सम्बन्ध विशेष को अथवा आत्मा और कर्म के एक क्षेत्रावगाह रूप सम्बन्ध विशेष को या इसके कारणभूत जीव के परिणामों को बन्ध कहते हैं। आस्रव के निरोध को संबर कहते हैं । बद्ध कर्मों के एकदेश क्षय को निर्जरा कहते हैं। आत्मा से समस्त कर्मों के छूट जाने को मोक्ष कहते हैं। (१२५)

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