Book Title: Karananuyoga Part 1
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 129
________________ जो अखण्डप्रदेशी हैं-अखण्डित अनेक प्रदेश रूप हैं, उन द्रव्यों को मुख्य काय कहते हैं, जैसे जीव, धर्म, अधर्म, आकाश । (२) जिनके प्रदेश खण्डित (पृथक्-पृथक्) हों, किन्तु स्निग्ध-रूक्ष गुण के निमित्त से परस्पर बन्ध को प्राप्त होकर जिनमें एकत्व हो गया हो अथवा बन्ध होकर एकत्व को प्राप्त होने की जिनमें सम्भावना हो उनको उपचारित काय कहते हैं, जसे पुद्गल । कालद्रव्य में ये दोनों ही बातें नहीं है, वह स्वयं अनेकप्रदेशी न होने से मुख्य काय भी नहीं है और स्निग्ध-रूक्ष गुण न होने से बंध को प्राप्त होकर एकत्व की भी उसमें सम्भावना नहीं है, इसलिए कालद्रव्य उपचरित काय भी नहीं है। अतः काल द्रव्य को छोड़कर शेष जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश इन पाँच द्रव्यों को पंचास्तिकाय कहते हैं। काल द्रव्य कायरूप नहीं है, परन्तु अस्ति रूप है। २४२. प्रश्न : पदार्थ के कितने भेद है ? उनका क्या स्वरूप है? उत्तर : मूल में जीव-अजीव दो पदार्थ हैं। दोनों के पुण्य-पाप ये दो-दो भेद होते हैं इसलिए चार पदार्थ हुए। जीव और अजीव के ही आनव-संवर-निर्जरा-बन्ध-मोक्ष ये पाँच भेद (१२४)

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