Book Title: Karananuyoga Part 1
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 131
________________ २४३. प्रश्न : मिथ्यात्य गुणस्थान से पाँचवें गुणस्थान तक पृथक्-पृथक् जीयों की संख्या कितनी है ? उत्तर : मिथ्यादृष्टि जीव अनन्तानन्त हैं। देशसंयत में तेरह करोड़ मनुष्य और पल्य के असंख्यातवें भाग प्रमाण तिर्यच हैं। सासादन गुणस्थान में बावन करोड़ मनुष्य और श्रावकों से असंख्यात गुणे शेष तीन गतियों के जीव हैं। मित्र गुणस्थान में एक सौ चार करोड़ मनुष्य और सासादन गुणस्थान वाले जीवों के प्रमाण से संख्यात गुणे शेष तीन गतियों के जीव हैं। अविरत सम्यक्त्य गुणस्थान में सात सौ करोड़ मनुष्य और मिश्र गुणस्थान वाले जीवों के प्रमाण से असंख्यातगुणे शेष तीन गतियों के जीव हैं। २४४. प्रश्न : प्रमत्तविरत गुणस्थान से अयोगकेवली गुणस्थान पर्यन्त संयत जीवों की पृथक्-पृथक् संख्या कितनी है ? उत्तर : प्रमत्त गुणस्थानयर्ती संयत जीवों का प्रमाण पाँच करोड़ तिरानवे लाख अट्ठानवे हजार दो सौ छह (५,६३,६८,२०६) है। अप्रमत्त गुणस्थानावर्ती संयत जीवों का प्रमाण दो करोड़ छियानवे लाख निन्यानवे हजार एक सौ तीन (२,६६,६६,१०३) है। उपशम श्रेणी वाले आठवें, नौवें, दसवें, ग्यारहवे गुणस्थानवती संयत जीवों का प्रमाण २६६ (१२६)

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